आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण गीत “दिल आबाद कर रही यादें”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 143 ☆
☆ गीत – दिल आबाद कर रही यादें… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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गीत:
जब जग मुझ पर झूम हँसा
मैं दुनिया पर खूब हँसा
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रंग न बदला, ढंग न बदला
अहं वहं का जंग न बदला
दिल उदार पर हाथ हमेशा
ज्यों का त्यों है तंग न बदला
दिल आबाद कर रही यादें
शूल विरह का खूब धँसा
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मैंने उसको, उसने मुझको
ताँका-झाँका किसने-किसको
कौन कहेगा दिल का किस्सा?
पूछा तो दिल बोला खिसको
जब देखे दिलवर के तेवर
हिम्मत टूटी कहाँ फँसा?
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
२६-५-२०२३, जबलपुर
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