सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण  आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…हमारी इटली यात्रा – भाग 2)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ –यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 14 ☆  

? मेरी डायरी के पन्ने से…  – हमारी इटली यात्रा – भाग 2 ?

(अक्टोबर 2017)

रोम में घूमते हुए हम अपने पसंदीदा और चयनित स्थानों को प्रतिदिन देखने निकलते। यहाँ आप सबसे एक बात साझा करती हूँ आप अगर किसी ट्रैवेलिंग कंपनी के साथ जाते हैं तो वे आपको दिखाएँगे तो सभी महत्त्वपूर्ण स्थान पर विस्तार से देखने का समय नहीं दिया जाता। जिस कारण आप अपनी इच्छानुसार किसी भी स्थान पर पर्याप्त समय रुककर उसका आनंद नहीं ले पाते। यही कारण है कि हम अपनी यात्रा की व्यवस्था स्वयं करते हैं। दौड़-भागकर आप किसी भी स्थान को देखने का आनंद पूर्ण रूप से नहीं ले सकते।

अब हमारा दूसरा पड़ाव था वैटीकन सिटी।

हमारे रिसोर्ट के शटल गाड़ी ने हमें सुबह – सुबह ही स्टेशन ले जाकर उतार दिया। हमें पता था वह दिन हमारे लिए लंबा और थकाने वाला था तो हम भरपेट नाश्ता करके ही निकले। समय पर ट्रेन आने पर हम वैटीकन शहर पहुँचे।

यह शहर थोड़ी ऊँचाई पर स्थित है। अर्थात पहाड़ी इलाका है। यह सारा शहर ऊँची दीवार से घिरा हुआ है। संसार का यह सबसे छोटा शहर और सबसे छोटा देश भी है। परंतु यहाँ जाने के लिए वीज़ा की आवश्यकता नहीं होती।

कैथोलिक ईसाई धर्म के लोगों के लिए यह स्थान धार्मिक स्थल है। इस छोटे शहर में काफी हलचल रहती है। यह न केवल ईसाई धर्म गुरु पोप का निवास स्थान है बल्कि यह सुंदर और ऐतिहासिक संरचनाओं के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। ईसाई धर्म के लोगों के बकेट लिस्ट में यहाँ आने की उत्कट इच्छा अवश्य होती है।

यह हमारा सौभाग्य ही है कि हमें इस ऐतिहासिक स्थान पर पर्यटन करने का अवसर मिला।

वैटीकन के मुख्य तीन हिस्से हैं। सेंट पीटर्स बैसिलिका, सिस्टीन चैपेल और वैटिकन पेलेस

इसमें विशाल संग्रहालय है। इस संग्रहालय में तीन हज़ार वर्ष पूर्व की वस्तुएँ भी देखने को मिलती हैं।

बैसिलिका का हर कोना आकर्षक चित्रकारी से परिपूर्ण है। दीवारें, छत पर सभी जगहों पर सुंदर चित्रकारी है। कहीं – कहीं पर विशाल कालीन भी दीवारों पर दिखाई देते हैं। यहाँ अत्यंत रंगीन और आकर्षक चित्रकारी के सुंदर नमूने दिखाई देते हैं। ये चित्रकारी रोम साम्राज्य के विस्तार, उसकी संस्कृति और समाज का दर्शन कराते हैं।

अगर आप पोप के निवास स्थान का भ्रमण करना चाहते हैं तो लोकल उनकी अपनी बसें चलती हैं जो सब तरफ काँच से बनी पारदर्शी होती है। जो यात्रियों को वहाँ की सैर कराती है। इन सबके लिए टिकट है। भीतर उनका अपना प्रेस है, बिशप और पोप का आवास स्थान है, सुंदर उद्यान है। कई आकर्षक फव्वारे हैं। बस से उतरने की इजाजत नहीं होती। भीतर कई प्कार के फूल दिखाई दिए। बस में साथ चलनेवाले गाइड ने बताया कि वहाँ के बगीचों में जो फूल दिखाई देते हैं वे संसार के विभिन्न राज्यों से लाए गए हैं। भीतर भरपूर स्वच्छता दिखाई दी। इमारतें चमक रही थीं क्योंकि निरंतर सफाई की जाती है। वैटीकन सिटी घूमने में भी कई घंटे लगते हैं।

यहाँ हज़ारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। विभिन्न दालानों में भयंकर भीड़ दिखाई देती है। विभिन्न चित्रकारी और अन्य सुंदर वस्तुओं को देखते हुए जब हम आगे बढ़ रहे थे तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि चल नहीं रहे थे बल्कि भीड़ के धक्के से बस आगे बढ़ते जा रहे थे। विभिन्न प्रकार की गंध से पूरा वातावरण विचित्र सा हो रहा था। हम और अधिक वहाँ न रुक सके और खुले विशाल परिसर की ओर निकल पड़े।

वैटिकन सिटी सन 1929 में टाइबर नदी के किनारे आज के इस रूप में स्वतंत्र पहचान के साथ स्थापित किया गया। यह मूल रूप से कैथोलिक चर्च के रूप में चौथी शताब्दी में निर्माण किया गया था। यहाँ पादरी पीटर चौक है जो विशाल, भव्य तथा बैसीलस का एक हिस्सा है। इस शहर में एक पुस्तकालय भी है जहाँ पुराने ऐतिहासिक पुस्तकें जो पैपरस पर लिखे गए थे उपलब्ध हैं।

इस सुंदर आकर्षक छोटे से शहर को देखने के लिए एक दिन का कार्यक्रम बनाकर ही जाना चाहिए। शाम को सात बजे हमारे रिसोर्ट की शटल बस रेल्वे स्टेशन पर आती थी। हम पाँच बजे के करीब ही वैटिकन सिटी से निकल गए। हम चलकर स्टेशन पहुँचे। मौसम में ठंडक थी इसलिए चलते हुए परेशानी नहीं हुई। समय पर ट्रेन से शटल बस में बैठकर रिसोर्ट पहुँचे। हम इतने थक गए थे कि उस रात हम जल्दी ही सो गए। हमारे रिसोर्ट में भोजन पकाने की पूरी सुविधा थी। यह एक फ्लैट जैसी व्यवस्था है। हम अपना भोजन पकाकर ही खाते थे जिससे देश का स्वाद परदेस में भी मिलता रहा।

क्रमशः…

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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