सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण  आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…हमारी इटली यात्रा – भाग 3)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ –यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 15 ☆  

? मेरी डायरी के पन्ने से…  – हमारी इटली यात्रा – भाग 3 ?

(अक्टोबर 2017)

हमारा तीसरा पड़ाव था पॉम्पे।

पॉम्पे संसार का एकमात्र ऐसा शहर है जो ज्वालामुखीय लावा के कारण उध्वस्त हो चुका था और फिर कभी न बसा। यह शहर बहुत पुराना शहर था। पॉम्पे मैगनस नामक रोमन जेनरल ने इस शहर की स्थापना की थी। बाद में यह शहर लोगों की छुट्टी मनाने की जगह बन गई थी। यहाँ के मकान अत्यंत सुंदर और रंग बीरंगी टाइल्स से बने थे। यहाँ फलों -सब्ज़ियों का बाजार था, रेस्तराँ थे। तकरीबन 12000 लोग यहाँ स्थायी रूप में रहते थे। उत्सवों के समय आसपास के रहवासी भी उत्सव मनाने यहाँ ऊपर आया करते थे।

नेपल्स की खाड़ी के पास एक ज्वालामुखीय पर्वत है जिसका नाम है विसूवियस।

सन 79 में इस पर्वत से निकला लावा या भूराल ने देखते ही देखते पूरे शहर को उध्वस्त कर दिया, निगल लिया। लोगों को एक क्षण में पत्थर जैसा बना दिया।

आज मनुष्य की कोई ऐसी मूर्ति यहाँ नहीं हैं पर उस समय के बर्तन, कुछ पत्थर बने पशु और उध्वस्त घर अवश्य देखने को मिलते हैं। सारा शहर सुचारु रूप से बना हुआ था। आधुनिक ढंग से सड़कें, गलियों में वितरित तथा स्टेटस के हिसाब से मकान बने हुए थे। एक भव्य मंदिर भी था क्योंकि अभी लोग ईसाई नहीं थे। वहाँ पहुँचकर सच में मन में टीस- सी उठती है कि किस तरह बसा बसाया शहर और एक अत्यंत उन्नतशील सभ्यता क्षण में उध्वस्त हो गई। तकरीबन 10, 000 लोगों की मौत हुई थी। 1748 तक किसी को इस शहर के अस्तित्व के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। आज यह स्थान UNESCO की देखरेख में है। आज भी यहाँ आरक्योलॉजिकल सर्वे हो रहे हैं।

पॉम्पे के उध्वस्त शहर में घूमते हुए हमें आठ – नौ घंटे लगे। हम पॉम्पे के इतिहास की जानकारी पढ़कर ही यह स्थान देखने गए थे। हर स्थान के दर्शन के समय हम ऐतिहासिक तथ्यों से रिलेटे कर सके।

स्मरण रहे हमने हर स्थान का चुनाव अपनी जिज्ञासा के अनुरूप किया था और हम किसी ग्रुप के साथ कभी नहीं घूमें। उसका मुख्य कारण यह है कि ऐसी ट्रिप वाली बसें आपको जगहें बाहर से ही दिखाती हैं या दो घंटे में सैर करके लौट आने को कहती है। हम इस तरह से घूमना नहीं चाहते थे तो हर स्थान पर पर्याप्त समय दे सके।

यहाँ हमें बड़े -बड़े घरों के सामने ईंट से बँधी चौड़ी सड़कें दिखीं। सारा शहर छोटी छोटी गलियों में वितरित थी। बड़े अमीरों के घर के भीतर सुंदर मूर्तियाँ लगी दिखाई दी, कुछ घरों में फव्वारे और बगीचे भी दिखाई दिए। सभी आठ दस घर एक दूसरे के साथ स्टे हुए थे। फिर उसके बाद एक गली हुआ करती थी। हर घर के बाहर बरामदा सा है। उनमें खंभे बने हुए हैं।

हमने ज्वालामुखी की राख से लिप्त बर्तन, कुत्ते और घर में उपयोग में लाए जानेवाले बर्तन देखे। हमारा मन सिहर उठा। सभी कुछ मानो ठोस पदार्थ से बने हुए दिखाई देते हैं। उस रात क्या हुआ होगा इसका अंदाज़ा लगाना भी कठिन ही है।

बाहर निकलने के गेट से पूर्व एक रेस्तराँ है जहाँ साधारण इटालियन भोजन और कॉफी की व्यवस्था है। हम भी सारा दिन चलकर थक चुके थे तो थोड़ी देर आराम करने के लिए कॉफी का स्वाद लेकर वहाँ बैठ गए।

उस दिन हम बारह पर्यटक रिसोर्ट से चले थे तो हमारे लिए एक मिनी बस की व्यवस्था रिसोर्ट ने कर दी थी। अवश्य ही थोड़ी ऊँची कीमत देकर यह व्यवस्था की गई थी उसका कारण यह था कि पॉम्पे तक जाने के लिए कोई ट्रेन की व्यवस्था नहीं थी। वहाँ प्राइवेट टैक्सी या इस तरह के मिनी बस द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। लौटते समय हमें वह पहाड़ भी दिखाया गया जहाँ से ज्वालामुखी का प्रकोप हुआ था। हम नैपल्स की खाड़ी तक पहुँचे। यह ऐतिहासिक शहर है। यहाँ बहुत पुराने चर्च भी हैं। यहाँ की इमारतें अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं। हम सभी बहुत थक चुके थे इसलिए हम किसी भी चर्च की सुंदरता को देखने के लिए नहीं गए जिसका आज हमें पश्चाताप भी है।

चौथे दिन हम रिज़ोर्ट में रहे। यहाँ भोजन पकाने की सुविधा थी। यहाँ हमने एक बेडरूम हॉल किचन वाला फ्लैट बुक किया था। उस दिन हमने कैरोलीन और डेनिस को दोपहर के समय भारतीय भोजन के लिए आमंत्रित किया था। उन्हें भी हमारा यह आतिथ्य बहुत मन भाया।

क्रमशः…

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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