श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “अधिक वर्षा का गीत।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 16 ☆  अधिक वर्षा का गीत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

नदी उड़ेले कितना पानी,

प्यास नहीं बुझती सागर की।।

 

मेंड़ उठाये खेत खड़े हैं,

डूब गई हैं फ़सलें सारी।

हाथ धरे कलुआ बैठा है,

कहाँ जाए बरखा है भारी।

 

बचा खुचा भी दाँव लगा है,

ख़बर नहीं मिलती बाहर की।।

 

सभी दिशाएँ पानी पानी,

शहर गाँव के रस्ते टूटे।

राहत की आशा में सारे,

भाग लिए बैठे हैं फूटे।

 

ढोर बछेरू बँधे थान से,

धार नहीं टूटी छप्पर की।।

 

घेर-घेर कर पानी मारे,

घुमड़-घुमड़ कर बरसें बदरा।

रह-रह बिजुरी चमक डराती,

नदिया नाले बने हैं खतरा।

 

बाँध हो रहे बेक़ाबू हैं,

सुध-बुध खो बैठे हैं घर की।।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest