श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  मौन मन का मीत)

☆ तन्मय साहित्य  #192 ☆

☆ मौन मन का मीत…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

ओशो को पढ़ते हुए मौन पर एक छंद सृजित हुआ, प्रतिक्रियार्थ प्रस्तुत है…

बिना कहे, जो सब कह जाए वही मौन है

निर्विचार, चिंतक हो जाए वही मौन है

अन्तर शुन्याकाश, व्याप्त चेतनानुभूति

निष्प्रह मन, खुशियाँ पहुँचाये वही मौन है।

 – तन्मय

उपरोक्त मुक्तक के संदर्भ में एक रचना “मौन मन का मीत…” जो पूर्व में विपश्यना के 10 दिवसीय मौन साधना शिविर करने के बाद लिखी थी, मन हो रहा है आपसे साझा करने का, प्रतिक्रियार्थ प्रस्तुत है –

☆ मौन मन का मीत…. ☆

मौन मन का मीत

मौन परम सखा है

स्वाद, मधुरस मौन का

हमने चखा है।

 

अब अकेले ही मगन हैं

शून्यता, जैसे गगन है

मुस्कुराती है, उदासी

चाहतों के, शुष्क वन है

जो मिले एकांत क्षण

उसमें स्वयं को ही जपा है, मौन…

 

कौन है, किसकी प्रतीक्षा

कर रहे, खुद की समीक्षा

हर घड़ी, हर पल निरंतर

चल रही, अपनी परीक्षा

पढ़ रहे हैं, स्वयं को

अंतःकरण में जो छपा है, मौन…

 

हैं, वही सब चाँद तारे

हैं, वही प्रियजन हमारे

और हम भी तो वही हैं

आवरण, कैसे उतारें

बाँटने को व्यग्र हम

जो, गाँठ में बाँधे रखा है, मौन…

 

मौन, सरगम गुनगुनाये

मौन, प्रज्ञा को जगाये

मौन, प्रकृति से मुखर हो

प्रणव मय गुंजन सुनाये

मौन की तेजस्विता से

मुदित हो तन मन तपा है।

स्वाद मधुरस मौन का

हमने चखा है।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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