श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 45 ☆ देश-परदेश – हस्तलिपि ☆ श्री राकेश कुमार ☆
ऐसा माना जाता है, कि हस्तलिपि लिखने वाले का आइना होती हैं। उसको देखकर व्यक्ति के व्यक्तित्व, चरित्र और अनेक जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं।
हस्तलिपि विशेषज्ञ कानून के सहयोगी बन कर न्याय प्रणाली में विश्वास बनाए रखने में सहायता करते हैं। जब तक टंकण इत्यादि सुविधा उपलब्ध नहीं थी, अच्छी हस्तलिपि वाले आलेख लिखने में अग्रणी रहते थे। दुकान इत्यादि पर लगने वाले बोर्ड पर सुंदर हस्तलिपि वाले ही पेंट से नाम अंकित किया करते थे।
हम तो ऊपर लिखे गए संदेश वालों की बिरादरी से आते हैं। खराब हस्तलिपि के कारण पुराने समय में परिवार के बुजुर्ग पत्राचार में भी हमें अवसर नहीं देते थे। छोटा भाई अवश्य दादा जी का पत्र लिख कर एक चवन्नी कबाड़ लेता था।
हमारे बैंक के एक मित्र तो मज़ाक में ये तक कह जाते थे, उनके लिखे हुए में जो कुछ पूछना है, चौबीस घंटे में पूछ लेवें, इसके बाद उनकी यादस्त साथ नहीं देती हैं।
कुछ लोग तो इतना सुंदर लिखते है, कि मानो कागज पर मोती बिखेर दिए हों।
विवाह पूर्व जब भावी पत्नी को पत्र लिखा, तो जवाब आया था कि हमारी हस्तलिपि तो डॉक्टरों जैसी है, उनके पर्चे तो कंपाउंडर ही पढ़ पता है, आपका पत्र कौन पढ़ पाएगा। हमने उत्तर में लिखा था, आप ही हमारी कंपाउंडर हैं। इससे पूर्व आप कहें की दूरभाष का उपयोग भी तो किया जा सकता था, तो बताए देते है, हमारे घर की एक मील की परिधि में भी किसी के यहां दूरभाष की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
ये तो भला हो कंप्यूटर/मोबाईल की सस्ती सुविधा उपलब्ध हो जाने से हमारे जैसे निकृष्ट हस्तलिपि वालों की समाज में इज्ज़त बनी हुई हैं।
© श्री राकेश कुमार
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