श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “अब तो जागो आँखें खोलो…”. आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 180 ☆
☆ “अब तो जागो आँखें खोलो…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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चुप्पी तोड़ो कुछ तो बोलो
तुमको घेर रहे हैं दुश्मन
उनके आगे खुद को तोलो
जाग उठो अब आँखें खोलो
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आज समय की माँग यही है
वही कहो जो बात सही है
बाहर निकलो भय के भ्रम से
द्वार हृदय के झट से खोलो
अब तो जागो आँखें खोलो
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नफरत की ऊँची दीवालें
दुश्मन चलते कुटिल कुचालें
बिछे जाल हर गाँव-नगर में
इनकी सारी परतें खोलो
अब तो जागो आँखें खोलो
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आज वादियाँ दहशत में हैं
उग्रवाद अब हरकत में हैं
आओ मिलकर साथ लड़ें हम
अब तो सभी साथ में हो लो
अब तो जागो आँखें खोलो
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एक बनें हम नेक बनें हम
सच्चाई की टेक बनें हम
सुख-वैभव “संतोष” चाहते
द्वेष भाव सब अपने धोलो
अब तो जागो आँखें खोलो
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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