डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – समय सर्प सा…।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 151 – गीत – समय सर्प सा…  ✍

कोलाहल की गर्म शलाका, प्रतिपल दाग रही है मन को।

अविरल आवाजाही लेकिन

गलत मार्ग पर हर यात्री है

दृष्टि, दिशा के पाँव पकड़ती

दिशा कि वह तो कर पात्री है।

अश्रुसिक्त आँखों का अंकुश, साधन पाता नील गगन को।

 

हरी दूब के होंठ कुचल कर

अंगारों ने हाथ धो लिये

धीरज का भावार्थ विवशता

सुमन शूल के साथ हो लिये

आराधक की विवश चेतना, पूज रही है वृंदावन को।

 

समय सर्प सा सरक रहा है

अब तो प्राण प्रणों से ऊबे

हर अभाव हठ योग कर रहा

संशय में डूबे मनसूबे

जाने कौन कुतर जाता है, अनुशासन की रामायण को।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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