श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “सजल – अपनी सुसंस्कृति को हमने…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 93 – सजल – अपनी सुसंस्कृति को हमने… ☆
अपनी सुसंस्कृति को हमने,
अपने हाथों तापा।
बुरे काम का बुरा नतीजा,
ईश्वर ने घर-नापा।।
ऊँचाई पर चढ़े शिखर में,
जिनको हमने देखा,
भटके राही उन बेटों के
हुए अकेले पापा।
बनी हवेली रही काँपती,
काम न कोई आया।
विकट घड़ी जब खड़ा सामने,
यम ने मारा लापा।
जोड़-तोड़ कर जिएँ सभी जन
यही जगत ने भाँपा।।
जीवन जीना सरल है भैया,
सबसे कठिन बुढ़ापा।
तन पर छाईं झुर्री देखो,
सिर में आई सफेदी ।
तन-मन हाँफ रहा है कबसे,
दिल ने खोया आपा।
जिन पर था विश्वास उन्हीं ने,
घात लगा धकियाया।
देख प्रगति की सीढ़ी चढ़ते,
अखबारों ने छापा।
समय बदलते देर लगे ना
देख रहे हैं कबसे
सच्चाई पर अगर चले तो
बँधे सिरों पर सापा।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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