डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – दुख भी सुख लगता है…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 152 – गीत – दुख भी सुख लगता है…
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बुझने के संकल्प क्षणों में
जलने का संतोष मिल गया।
मैं तो होंठ सिये बैठा था
मेरे पास शब्द थोड़े थे
गीतों की सौगंध दिलाकर
तुमने ही टाँके तोड़े थे।
मरहम की उम्मीद नही थी, लेकिन तुमने घाव कुरेदे।
मेरे लिये बूँद का टोटा, औरों को मधुकोष मिल गया।
जो भी तुमने किया ठीक है
अब तो दुख भी सुख लगता है
तुमने दुख भी दिया अधूरा
केवल इतना दुख लगता है।
मेघों का परिचय माँगा था, मगर मिली मरुथल की दहकन
राई भर गुनाह के कारण, पर्वत जैसा दोष मिल गया।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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