श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय एवं सार्थक लघुकथा “फ्रेम”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 167 ☆
☆ लघुकथा – 🔲 फ्रेम 🔲 ☆
फ्रेम कहते ही लगता है, किसी चीज को सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया घेरा या सुरक्षा कवच, जिसमें उसे चोट ना पहुंचे। बस ऐसे ही प्रेम थे डॉक्टर रघुवीर सिंह, उस अभागी सोनाली के लिए जो सुख या खुशी किसको कहते हैं, जानती ही नहीं थी।
जीवन का मतलब भूल गई थी। माता-पिता की इकलौती संतान। बहुत कष्टों से जीवन यापन हो रहा था। माँ घर-घर का झाड़ू पोछा करती और पिताजी किसी किराने की दुकान पर नौकरी करते थे।
समय से पहले बुढ़ापा आ गया था। चिंता फिक्र और पैसे की तंगी से बेहाल। दोनों ने एक दिन घर छोड़ने का फैसला किया, परंतु सोनाली का क्या करें??? यह सोच चुपचाप रह गए।
पास में एक डाॅ. रघुवीर सिंह थे जो वर्षों से वहां पर रहते थे। उनकी अपनी संतान बाहर विदेश में थी। कभी-कभी सोनाली के पिता उनके पास जाकर बैठते और मालिश कर दिया करते। बातों ही बातों में उन्होंने कहा… “हम तीर्थ करना चाहते हैं और सोनाली को लेकर जा नहीं सकते। आप ही उपाय बताइए।” डाॅ. साहब ने कहा… “यहाँ मेरे पास छोड़ दो घर का काम करती रहेगी हमारी धर्मपत्नी के साथ उसका मन भी लगा रहेगा कुछ सीख लेगी।
और समय भी कट जाएगा। तुम्हारा तीर्थ भी हो जाएगा।” भले इंसान थे, डाॅ. साहब। उन्होंने पैसे वैसे का इंतजाम कर दिया। सोनाली को उनके यहाँ आउट हाउस में रख दोनों दृढ़ निश्चय कर चले गए कि अब लौटकर आना ही नहीं है। सोनाली को इस बात का पता नहीं था। समय गुजरता गया। एक दिन डॉक्टर साहब को पत्र मिला फोटो सहित लिखा हुआ सोनाली के माता-पिता का देहांत हो चुका था। सन्न रह गए चिंता से व्याकुल हो वह सोचने लगे कि सोनाली का क्या होगा?? कैसे उसे संभाले। उन्होंने बहुत ही समझ कर दो बड़े-बड़े फ्रेम बनवाएं।
एक में उनके माता-पिता की फोटो जिसमें माला पहनकर उसे ढक कर रखा गया और दूसरा फोटो सोनाली को दुल्हन के रूप में खड़ी साथ में डाॅ. रघुवीर और उनकी पत्नी दोनों का हाथ आशीर्वाद देते। उसे भी ढक कर रखा गया।
आज सब काम निपटाकर वह बैठी माता जी के पास बातों में लगी थी। बड़े प्रेम से माताजी में सिर पर हाथ फेरी और बोली “बहुत दिन हो गया सोनाली तुम कुछ कहती नहीं हो। आज हम तुम्हें एक सरप्राइज दे रहे हैं। इन दोनों फ्रेम में से तुम्हें एक फ्रेम तय करना है जो तुम्हारे भविष्य का रास्ता तय करेगी और एक सुखद सवेरा तुम्हारा इंतजार करती नजर आएगी। परंतु तुम्हें इन दोनों फ्रेम में से एक फ्रेम पर अपने आप को मजबूत कर प्रसन्न और खुश रहना होगा।
अपने भावों को समेटना होगा। ” सोनाली समझी नही। इस फ्रेम पर क्या हो सकता है?? सभी खड़े थे और पास में नौकर जाकर खड़े थे। सोनाली ने पहले फ्रेम उठाया देखा.. उसकी नजर जैसे ही माला पहने तस्वीर पर पड़ी सांसे रुक गई।
इसके पहले वह रोती डाॅ. साहब बोल पड़े..” दूसरी भी उठा लो हो सकता है तुम्हें कुछ अच्छा लगे।” आँखों में आंसू भर दूसरी फ्रेम उठाई.. रोती रोती जाकर डाॅ. साहब के बाहों में समा गई। माताजी ने प्यार से कहा… “चल अब जल्दी तैयार हो जा। लड़के वाले आते ही होंगे। सारी तैयारियाँ हो चुकी है।” सोनाली को बाहों में समेटे डाॅ. साहब ने धीरे से कहा..” बेटा ईश्वर को यही मंजूर था।” डाॅ. साहब के मजबूत बाहों का फ्रेम आज सोनाली अपने आप को किसी राजकुमारी से कम नहीं समझ रही थी। कुछ शब्द नही थे उसके पास। बस फ्रेम में सिमटी थी।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈