श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी मानवीय आचरण के एक पहलू पर बेबाक लघुकथा “समय ” । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #31☆
☆ लघुकथा – समय☆
“सुधीरजी ! सुना है कि आप का एक बेटा इंजिनियर और एक डॉक्टर है.”
“जी ! ठीक सुना है आप ने,” उन्होंने अस्पताल के बिस्तर पर करवट ली .
“फिर भी आप यहाँ पर, अकेले दुःख देख रहे है.”
“वह तो देखना ही है.”
“मैं समझा नहीं. आप क्या कहना चाहते है?”
“यही कि मेरे बच्चें वही कर रहे है जी मैं ने अपने पिता के साथ किया था. यह तो नियति चक्र है. जो जैसे बौता है वैसा ही काटता है ”
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”