डॉ कुंदन सिंह परिहार
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अति सुंदर व्यंग्य ‘एक ‘सम्मानपूर्ण’ सम्मान की ख़त-किताबत ‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
सम्मान की सूचना का पत्र
प्रिय ज़ख्मी जी,
जैसा कि सर्वविदित है, हमारी संस्था ‘सम्मान उलीचक संघ’ प्रति वर्ष इक्कीस लेखकों/ कलाकारों को सम्मानित करती है। इस वर्ष के सम्मान के लिए हमारे द्वारा पूर्व में सम्मानित अंतर्राष्ट्रीय कवि बचईराम ने आपके नाम की सिफारिश की है। उनको आपका गज़ल संग्रह ‘रोती गज़लें’ बहुत पसन्द आया है। कहते हैं कि उस किताब ने उनको इतना रुलाया है कि अब उसके कवर को देखकर ही उन्हें रोना आ जाता है। आप तत्काल अपना आठ-दस लाइन का बायोडाटा भेज दें। ज़्यादा लंबा न खींचें, अन्यथा हमें छाँटना पड़ेगा।
हम यह बताना ज़रूरी समझते हैं कि सम्मान के लिए आने जाने का भाड़ा आपको स्वयं वहन करना होगा। संस्था इसमें कोई सहयोग नहीं करेगी। भोजन-आवास की व्यवस्था भी स्वयं ही करना होगी। हमारा जिम्मा सिर्फ स्टेज पर आपको सम्मानित करने का होगा।
अगर आप आगे के वर्षों में भी सम्मानित होना चाहें तो संस्था को कम से कम दस हजार रुपया सहयोग-राशि देकर अपना स्थान आरक्षित करा सकते हैं।
फिलहाल आप एक हफ्ते के भीतर संस्था के खाते में ₹500 जमा करके इस वर्ष के लिए अपना पंजीकरण करा लें। सम्मान की तिथि और स्थान की सूचना आपको शीघ्र दी जाएगी।
भवदीय
खैरातीलाल
अध्यक्ष
सम्मान के लाभार्थी का जवाब
आदरणीय खैरातीलाल जी,
चरण स्पर्श। प्रणाम।
आपकी संस्था के द्वारा सम्मान का प्रस्ताव पाकर मेरे आनन्द का पारावार नहीं है। आपका प्रस्ताव सर आँखों पर। मेरा ऐसा मानना है कि सम्मान बड़े भाग्य वालों को मिलता है और वह पूर्व जन्म के संचित सुकर्मों का सुफल होता है।
मैंने आपके द्वारा प्रस्तावित सम्मान की सूचना सभी मित्रों-रिश्तेदारों में प्रसारित कर दी है। फेसबुक में भी डाल दी है ताकि मेरे विरोधी पढ़कर जल मरें।
आप मेरे आने-जाने, रुकने-टिकने की चिन्ता न करें। वह सब मैं स्वयं वहन करूँगा। सम्मान के सामने यह सब तुच्छ है। रात भर स्टेशन के मुसाफिरखाने में पड़ा रहूँगा और वहीं कहीं ढाबे में भोजन कर लूँगा। अगर आसपास कोई गुरुद्वारा हो तो वही लंगर छक लूँगा। पिछले सम्मान में तो मैं संस्था के अध्यक्ष के दुआरे पर ही दरी बिछाकर लंबा हो गया था। वह सम्मान बार बार याद आता है। वैसे सच कहूँ तो सम्मान की खबर पाकर मेरी भूख-नींद गायब हो जाती है।
अगले साल के सम्मान के आरक्षण के लिए दस हजार की राशि भी लेता आऊँगा। एक दो मित्र भी अपने सम्मान के लिए आरक्षण कराना चाहते हैं। अगर उन्होंने रकम दे दी तो लेता आऊँगा। पाँच सौ की राशि आपका सन्देश मिलते ही भेज दी थी।
कृपा और स्नेह बनाये रखें,और इसी तरह लेखकों की हौसला अफज़ाई और इज़्ज़त अफज़ाई करते रहें।
विनीत
प्रीतमलाल ‘ज़ख्मी’
© डॉ कुंदन सिंह परिहार
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈