श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय एवं सार्थक लघुकथा “बहुरूपिया ”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 168 ☆
☆ लघुकथा – 🥳 बहुरूपिया 🥳 ☆
पुराने समय से चला रहा है। वेष बदलकर, वेशभूषा धारण कर, कोई भगवान, कोई महापुरुष, कोई वीर सिपाही, कोई जीव जानवर, तो कोई सपेरा, भील का रूप बनाकर भीख मांगते गांव, शहर, सिटी, और महानगरों में देखे जाते हैं। विदेशों में भी इसका प्रचलन होता है, परंतु थोड़ा बनाव श्रृंगार तरीका कुछ अच्छा होता है। पर यह होता सिर्फ पेट भरने और जरूरत का सामान एकत्रित करने के लिए या मनोरंजन के लिए।
जीविका का साधन बन चुका है। जो सदियों से बराबर चल आ रहा है। ऐसे ही आज एक महानगर में बहुत बड़े सभागृह में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर पांच वर्ष से कम के बच्चों का फैशन शो चल रहा था। जिसमें श्री कृष्ण और राधा रानी बनाकर, सभी मम्मी – पापा अपने-अपने बच्चों को ले जा रहे थे। बिटिया है तो राधा रानी और बालक है तो श्री कृष्ण।
सभी एकत्रित हो रहे थे। वहीं पास में एक बहुरूपिया खंजर परिवार डेरा डाले हुए था। उसमें एक महिला जिसके पास एक छोटा बच्चा था। लगभग पांच वर्ष का, जो देखने में अद्भुत सुंदरता लिए था।
महिला थोड़ी बहुत जानकारी रखती थी और थोड़ी पढ़ी लिखी थी उसने अपने बेटे को कौड़ियों और जो भी सामान उसके पास था, मोर पंख, रंगीन कागज स्याही रंग और बाँस की बाँसुरी रंगीन, कपड़े के टुकड़े से सिला हुआ छोटा सा कुर्ता – धोती और सिर पर साफा बांधकर बैठा कर देख रही थी।
जो भी वहां से निकलता उसे पलट कर जरूर देखते और अपने बच्चों की ओर देखा कहते… यह तो बहुरुपिया है। इसका काम ही ऐसा होता है।
महिला कई सभ्य लोगों से सुन सुन कर खिन्न हो चुकी थी। एक आने वाले सज्जन के सामने जाकर खड़ी हो गई। जो चमचमाती कार से निकाल कर खड़े हुए थे। 🙏उसने हाथ जोड़कर सीधे बोली… साहब जी क्या?? यह जो बच्चे सजे धजे ले जा रहे हैं। इनके बच्चे और मेरे बच्चे में कोई अंतर है। आखिर ये सब भी तो बहुरुपिया ही कहलाए।
बस शर्त यह है हम अपना पेट पालन करते हैं। इस काम से रोजी-रोटी चलती है। और आप लोग इसे फैशन शो कहते हैं। सज्जन ने सिर से पांव तक महिला को देखा और उसके बच्चे को देखा… पूर्ण कृष्ण के रुप से सजा वह बच्चा वास्तव में बालकृष्ण की वेशभूषा पर अद्भुत सुंदर दिख रहा था। थोड़ी ही देर बाद लाल कारपेट से चलता हुआ बच्चा उस सज्जन की उंगली पकड़े सभागृह में पहुंच गया।
निर्णायक मंडल का निष्पक्ष निर्णय बहुरुपिया कान्हा प्रथम विजेता।🎁🎁
🙏 🚩🙏
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈