श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # 82 ☆
☆ मुक्तक ☆ ।। जिन्दगी जियो कुछ अंदाज़ और कुछ नज़र अंदाज़ से ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
[1]
जिन्दगी रोज़ थोड़ी थोड़ी व्यतीत हो रही है।
कुछ कुछ जिन्दगी रोज़ ही अतीत हो रही है।।
जिन्दगी जीते नहींआज हमें जैसी जीनी चाहिये।
कलआएगी मौत सुनके बस भयभीत हो रही है।।
[2]
कांटों से करलो दोस्ती गमों से भी याराना करलो।
हँसने बोलने को कुछ न कुछ तुम बहाना करलो।।
मायूसी मान लो रास्ता है बस इक जिंदा मौत का।
हर बात लो नहीं दिल पर मिज़ाज़ शायराना करलो।।
[3]
जिंदगी जीनी चाहिये कुछ अंदाज़ कुछ नज़रंदाज़ से।
हवा चल रही होउल्टी फिर भी खुशनुमा मिज़ाज़ से।।
मिलती नहीं है खुशी बाजार से किसी मोल भाव में।
बस खुश हो कर ही जियो तुम हर एक लिहाज से।।
[4]
सुख से जीना है तो उलझनों को तुम सहेली बना लो।
मत हर छोटी बड़ी बात को हमेशा पहेली बना लो।।
समझो जिन्दगी की हर बात और जज्बात को तुम।
नाचेगी इशारों पर तुम्हारे जिंदगीअपनी चेली बना लो।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
बरेली
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