श्री अरुण श्रीवास्तव
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आलेखों की एक नवीन शृंखला “प्रमोशन…“ की अगली कड़ी। )
☆ आलेख # 88 – प्रमोशन… भाग –6 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
आखिर कुछ महीनों और कुछ दिनों के इंतजार के बाद बहुप्रतीक्षित रिजल्ट आ ही गया और सारे कि सारे ही पास हो गये. अब इंटरव्यू फेस करना था तो उसकी तैयारियां शुरु हो गईं. तैयारी का पहला चरण इंटरव्यू के लिये पहनी जानी वाली ड्रेस का चयन करना था. इंटरव्यू की अनुमानित तिथि तक ग्रीष्म ऋतु के पूरे शबाब में होने के कारण फुल शर्ट और पैंट ही मुफीद माना गया. कंठलंगोट पहनने का प्रशिक्षण शुरु हो गया जो कि साक्षात्कार से दस मिनट पहले भी पहनी जा सकती है. शुक्र है कि उस वक्त सीसीटीवी का अविष्कार नहीं हो पाया था वरना बाहर की रिकार्डिंग देखकर ही अंदरवाले कुछ लोगों को सिलेक्ट लिस्ट से बाहर कर देते. जो रोजमर्रा के जीवन में पहने जाते हैं उन्हें जूते कहा जाता है पर इंटरव्यू में चरणों की शोभा “शूज़” से बढ़ती है इसका पूरा खयाल रखा जाता है कि ये साउंड प्रुफ हों और इन शूज़ को कुत्तों के समान काटने का शौक न हो. शहर इतना बड़ा तो था कि वहाँ बैंक में पहले प्रमोशन के हिसाब से सब कुछ मिल जाता था तो बाहरी डेकोरेशन की तैयारी पूरी थी.
अब इंटरनल डेकोरेशन के लिये तैयारी करनी थी. उस समय मॉक इंटरव्यू नामक सुविधा उपलब्ध नहीं थी. जिन लोगों ने फिर से वही किताबें उठा लीं, उनको सलाह दी गई कि इन किताबों पर आधारित ज्ञान की परीक्षा तो हो गई. अब इंटरव्यू का मतलब पर्सनैलिटी परीक्षण से होता है. बात करने का तरीका, समस्याओं पर प्रत्याशी का नजरिया, जो भी आसपास घट रहा है याने करेंट अफेयर्स, उसकी अपडेट्स, और सबसे कठिन प्रश्न कि “Why you should be promoted” वैसे इसके बहुत सारे सरल जवाब हैं पर ये इंटरव्यू में दिये नहीं जा सकते, उद्दंडता प्रकट होने का खतरा होता है. जो इसका जवाब बड़ी चतुराई से दे पाते हैं वो बोर्ड के सामने सिक्का जमा लेते हैं. ये बोर्ड कैरमबोर्ड नहीं बल्कि शतरंज का बोर्ड होता है जिसमें सारे शक्तिशाली मोहरे, दूसरी तरफ बैठे प्यादे की वजीर बनने की क्षमता भांपते हैं या अपने मानदंडों पर नापते हैं. इंटरव्यू कक्ष में नॉक करने और कक्ष में प्रवेश करते समय की बॉडी लेंग्वेज से लेकर वापस जाने तक की बॉडीलैंग्वेज का बड़ी बारीकी से परीक्षण किया जाता है. लिपिकीय स्टाफ क्या आसानी से अपनी कंफर्ट ज़ोन से बाहर आ पायेगा या फिर शाखाप्रबंधक बनकर भी बाबू बनकर ही बचा हुआ या छोड़ा हुआ काम करता रहेगा. प्रबंधन भले ही कनिष्ठ हो पर चयन, उपलब्ध में से ही सबसे बेहतर लोगों को चुनने की प्रक्रिया ही इंटरव्यू कहलाती है जिसकी गुणवत्ता और श्रेष्ठता प्रबंधन के बढ़ते लेवल के साथ बढ़ती जाती है. इंटरव्यू के दौरान कॉन्फिडेंस तो कम होता है पर हाथों, और चेहरे पर पसीना आना, गला सूखने पर भी सामने रखे पानी के गिलास का अनुमति लेकर प्रयोग नहीं करना, आवाज़ कांपना, बहुत धीरे बोलना, जानते हुये भी खुद को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त नहीं कर पाना ये सब व्यक्तित्व की कमजोरियों में शुमार होते हैं. हर अर्जुन, कर्ण और एकलव्य के समान कुशल धनुर्धर नहीं होता पर काबलियत से जो इंटरव्यू बोर्ड को आश्वस्त करदे वही सिलेक्ट लिस्ट में जगह पाता है. मि. 100% जब इंटरव्यू कक्ष में गये और फिर जब वापस निकले तो उनकी nervousness में अप्रत्याशित वृद्धि नजर आ रही थी जबकि बाकी चार तो “हुआ तो हुआ वरना कौन सी नौकरी जाने वाली है” वाले मूड में प्रफुल्लित नजर आ रहे थे.
रिजल्ट का इंतजार कीजिये, ये मेरी नहीं हमारी कहानी है.
© अरुण श्रीवास्तव
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