श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 52 ☆ देश-परदेश – फुटबॉल ☆ श्री राकेश कुमार ☆
आज रात्रि एक पारिवारिक विवाह में सम्मिलित होना है, इसलिए सुबह सुबह बुआ जी को जियो के मुफ्त वाले फोन से जानकारी ली की आदरणीय फूफा जी कितने बजे जायेंगे, हम भी उनके साथ चलेंगे ताकि खातिरदारी बढ़िया हो जायेगी, वरना फूफा जी तो फूल जाते हैं।
बुआ लपक कर बोली तुम्हारे फूफा तो “फीफा” के दीवाने हो गए हैं, वो शादी में ना जायेंगे। हमने भी उनसे विनोद में कहा अब इस उम्र में फुटबॉल का शौक जब सिर के बॉल ही नहीं बचे, ये खेल तो बॉल काल में खेलना चाहिए। जब भी कोई बड़ा आयोजन/ व्यक्ति प्रसिद्ध होता है, दुनिया का हर व्यक्ति उससे स्वयं को जोड़ने का प्रयास करता हैं। अब पाकिस्तान जैसा देश भी ये कहते नहीं थक रहा है, कि फीफा की जिन बॉल से जो लोग खेल रहे हैं, वो तो उसके देश के सियालकोट शहर में बनी हुई बॉल हैं। पूरी दुनिया उनकी बालों से ही खेल रही हैं।
हमारा बॉलीवुड कहां पीछे रहने वाला है, वो कह रहे हैं, ये तो हमारी फिल्म का गीत ” बाला, ओ बाला” ( बॉल ला, बॉल ला) की थीम हैं। विवाह की तैयारी में हम भी केश कार्तनालय पहुंच कर नाई से बोले, अरे भाई भूरे बाल छोड़ कर सभी सफेद बाल कत्तर दो, विवाह में शामिल होना है। नाई भी कान में यंत्र लगा कर ” फीफा” की कमेंट्री सुन रहा था। भौंचक्का होकर बोला आप फीफा देखने के लिए कतार जा रहे है, क्या?पूरी दुनिया में नशा छाया हुआ फुटबॉल का, गज़ब की दीवानगी हैं। भले ही दैनिक जीवन में चार कदम भी बाइक से जाते है, लेकिन टीवी या रेडियो के माध्यम से अपने आप को फुलबॉल खेल प्रेमी सिद्ध करने में लगे रहते हैं।
विवाह स्थल को भी फुटबॉल स्टेडियम का रूप दिया हुआ था। नवविवाहित मैदान के मध्य में विराजमान थे। मैदान के दोनो अंतिम छोर पर गोल पोस्ट थी, जहां मिठाई की काउंटर थी। सजावट में भी फुटबॉल जैसे फानूस इत्यादि का उपयोग कर माहौल को समयानुसार बनाया हुआ था।
© श्री राकेश कुमार
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