प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “वर्षा बीती खुशियां ले कर आई दीवाली” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ कविता – “वर्षा बीती खुशियां ले कर आई दीवाली” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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वर्षा बीती सुखद शरद ऋतु खुशियाँ ले आई दीवाली।
नई उमंगें, नये फूल-फल नई बहारें लाई दीवाली॥
गाँव, गली, घर, शहर, सड़क सब दिखते सुन्दर रूप सजाये।
हर मन में उत्साह अनोखा, जैसा प्रिय पहुनों के आये॥
कुटी, महल, दुकान, बाजारें, सजी दुल्हिन-सी दिखती सारी ।
लोग खरीदी,लेन-देन-बिक्री करते दिखते व्यापारी ॥
आनंद का भण्डार बाँटती, डगर-डगर भरती उजियारा।
धरती पर परियों सी आकर, हर लेती सारा अंधियारा ॥
बिजली-दीपों की मालायें, जलतीं बुझती जुगनू जैसी ।
सारे भारत देख रोशनी भोंचक रह जाते परदेशी ॥
लक्ष्मी-पूजा की तैयारी में हर मन दिखती है खुशहाली।
कपड़े, माल, मिठाई, पटाके, खील बताशे लाई दिवाली ॥
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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