सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “धारा जब नदी बनी”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 24 ☆
उस धारा के हाथों को
उस ऊंचे से पहाड़ ने
बड़े ही प्रेम से पकड़ा हुआ था,
और उसके गालों से उसके गेसू उठाते हुए
उसने बड़ी ही मुहब्बत भरी नज़रों से देखते हुए कहा,
“मैं तुमसे प्रेम करता हूँ!”
धारा
पहाड़ के प्रेम से अभिभूत हो
बहने लगी-
कभी इठलाती हुई,
कभी गीत गाती हुई!
इतना विश्वास था उसे
पहाड़ की मुहब्बत पर
कि उसने कभी पहाड़ों के आगे क्या है
सोचा तक नहीं!
पहाड़ का दिल बहलाने
फिर कोई नयी धारा आ गयी थी,
और इस धारा को
पहाड़ ने धीरे से धकेल दिया
और छोड़ दिया उसे
अपनी किस्मत के हाल पर!
कुछ क्षणों तक तो
धारा खूब रोई, गिडगिडाई;
पर फिर वो भी बह निकली
किस्मत के साथ
अपनी पीड़ा को अपने आँचल में
बड़ी मुश्किल से संभालते हुए!
यह तो धारा ने
पहाड़ से अलग होने के बाद
और नदी का रूप लेने के पश्चात जाना
कि उसके अन्दर भी शक्ति का भण्डार है
और उसकी सुन्दरता में
चार चाँद लग आये!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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