डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – लौटाता हूँ रथ सपनों का…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 166 – गीत – लौटाता हूँ रथ सपनों का…
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लौटाता हूँ रथ सपनों का
शायद आगे राह नहीं है।
तिमिर वनों में भटक रहा था
तभी किरन सी पड़ी दिखाई
मावस ने ही जाते जाते
परिचय देकर कहा- ‘जुन्हाई’।
चाँदनिया चंदा की रानी, मुफलिस की दरगाह नहीं हैं
लौटाता हूँ रथ सपनों का, शायद आगे राह नहीं है।
नहीं दोष कुछ और किसी का
मैं ही ऐसा करमजला हूँ
जब भी कदम बढ़े हैं आगे
मैं खुद अपनी ओर चला हूँ
कोई आये कोई जाये मंजिल को परवाह नहीं है।
लौटाता हूँ रथ सपनों का शायद आगे राह नहीं है।
क्या है मन में कह न सकूँगा
यद्यपि बड़ी विकलता है
बार बार कहता है कोई
प्यास कंठ की दुर्बलता है
प्यासा ही रहने दो प्रियवर सहज विनय है आह नहीं है
लौटाता हूँ रथ सपनों का शायद आगे राह नहीं है।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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