डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी द्वारा रचित एक व्यंग्यात्मक कविता  “आओ कविता-कविता खेलें….। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 32☆

☆ आओ कविता-कविता खेलें…. ☆  

 

आओ कविता-कविता खेलें

मन से या फिर बेमन से ही

एक, दूसरे को हम झेलें।

 

गीत गज़ल नवगीत हाइकु

दोहे, कुण्डलिया, चौपाई

जनक छन्द, तांका-बांका

माहिया,शेर मुक्तक, रुबाई,

 

लय,यति-गति,मात्रा प्रवाह संग

वर्ण गणों के कई झमेले। आओ कविता….

 

छंदबद्ध कुछ, छंदहीन सी

मुक्तछंद की कुछ कविताएं

समकालीन कलम के तेवर

समझें कुछ, कुछ समझ न पाएं

 

आभासी दुनियां में, सभी गुरु हैं

नहीं कोई है चेले। आओ कविता……..

 

वाह-वाह करते-करते अब

दिल से आह निकल जाती है

इसकी उधर, उधर से इसकी

कॉपी पेस्ट चली आती है,

 

रोज समूहों से मोबाइल

सम्मानों के खोले थैले। आओ कविता….

 

उन्मादी कवितायें, प्रेमगीत

कुछ हम भी सीख लिए हैं

मंचों पर पढ़ने के मंतर

मनमंदिर में टीप लिए हैं,

 

साथी कई और भी हैं इस

मेले में हम नहीं अकेले।  आओ कविता….

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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Prabha Sonawane

वाह ऽऽऽ क्या बात है