श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 25 ☆

☆ कविता ☆ “नशा…☆ श्री आशिष मुळे ☆

ना निकालो बाहर मुझे

डूबा हूं और पीने दो मुझे

यहां बार बार हजार बार

मरकर बस अब जीने दो मुझे

 

घूम घूम झूम झूम

थिरकने दो मुझे

दर्या-ए-दिल में आज

बस बह जाने दो मुझे

 

कहीं बनूं दीप

कहीं बनूं आग

चाहें जैसे सुलगाओ

आज बस जलने दो मुझे

 

आए क्यों सामने

ए पर्दा नशीं

झलक क्या देखी

आती नहीं अब नींद मुझे

 

जानम जानम दर्द-ए-मन

भर दिया प्याला क्यों

प्यासे हमेशा अब होंठ मेरे

चूमा जान-ए-जाना मुझे क्यों

 

था मैं बस आशिष

बनाया मुझे हशीश जो

गर अब छु दूं किसीको

कहीं खो न जाए होश वो

 

देखता सपने नींद में

मुझे जगाया क्यों

अब हूं बस दीवाना

सिखाया मुझे क्यों

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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