श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – श्रम वीर। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 193 ☆
☆ संतोष के दोहे – श्रम वीर ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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साहस, जज्बा, होसला, जीत गये श्रम वीर
सरकारों की मदद से, सीना गिरि का चीर
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देव भूमि के देव सब, मिल कर हुए सहाय
करके रक्षा सभी की, स्वयं गये हर्षाय
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दुनिया भी अब चकित है, श्रम का देख बचाव
देख सभी की प्रार्थना, और देख सदभाव
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मिल कर सब ने बचा ली, मजदूरों की जान
बचाव दल की भूमिका, अद्भुत बड़ी महान
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संकट की हर घड़ी में, सब मिल रहिये साथ
मिलता है “संतोष” तब, ऊँचा होता माथ
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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