डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘मुक्त कैद’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 133 ☆
☆ लघुकथा – मुक्त कैद ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆
मायके से विदाई के समय उसे समझाया गया था कि ‘पति परमेश्वर होता है। मायके की बातें ससुराल में नहीं कहना और ससुराल में तो जैसे रखा जाए, वैसे रहना। ‘ कैसे भूलती अपने पिता की वह बात– ‘डोली में जा रही हो, अर्थी ससुराल से ही उठनी चाहिए। ‘सुनने में ये किसी पुरानी फिल्म के संवाद लगते हैं, पर नहीं। भारतीय नारी को आदर्श नारी के फ्रेम में जड़कर घर की दीवार पर टाँग दिया जाता है। उसकी जिंदा मौत किसी को नजर नहीं आती, खुद उसे भी नहीं।
यह जीवन उसने इतनी गहराई से जिया कि अल्जाइमर रोग में वह सब भूल गई लेकिन यह ना भूली कि पति परमेश्वर होता है। उसे ना अपने खाने-पीने की सुध थी, ना अपनी। बौराई-सी इधर-उधर घूमती, बोलती रहती– ‘आपने खाना खाया कि नहीं? बताओ, किसी ने अभी तक इन्हें खाने के लिए नहीं पूछा। ‘ कभी वह सिर पीट रही होती– ‘हे भगवान! आज तो बहुत पाप लगेगा हमें, पति से पहले हमने खाना खा लिया। ‘ थोड़ी देर बाद वही बात दोहराती, फिर वही, वही —। सिलसिला थमता कैसे? ससुराल जाते समय दी गई सीख वह भूली नहीं थी। वह सीख नहीं, मंत्र होता था शायद, जिसे अनजाने ही स्त्रियां जीवन भर जपती रहतीं और धीरे-धीरे अपना खाना-पीना, सुख-दुख, अस्तित्व सब होम उसमें|
वह अब घर की चहारदीवारी में कैद है, कहने को मुक्त। पतिदेव छुटकारा पाने के लिए निकल लेते हैं दोस्तों– यारों से मिलने। उनके आने पर वह कोई शिकायत ना कर कभी उन्हें प्यार भरी नजरों से देखती है, कभी सिर पर हाथ फेरती है, कहती है- ‘बहुत थक गए होगे, आओ जरा पैर दबा दूँ , कुछ खाओगे?’ वे झिड़क देते हैं – ‘हटो, जाओ यहाँ से, हर समय पीछे पड़ी रहती हो। अपना काम करो’।
‘अपना काम ???’ वह दोहराती है। इधर- उधर जाकर फिर लौटती है। उसी प्यार और अपनेपन के साथ फिर पूछती है – ‘थक गए होगे, पैरों में तेल लगा दूँ? — फिर झिड़की।
‘लगता है नाराज हो गए हैं हमसे’ – वह दूर बैठकर अपनेआप से बोलती है।
© डॉ. ऋचा शर्मा
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