श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है जीवन दर्शन पर आधारित एक दार्शनिक / आध्यात्मिक रचना ‘चक्र ‘। आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकेंगे. )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 20 – विशाखा की नज़र से ☆
☆ चक्र ☆
भूख है तो , चूल्हा है
चूल्हा है तो, बर्तन है
बर्तन है तो , घर है
घर है तो , सुरक्षा है
सुरक्षा है तो , दीवारें हैं
दीवारें हैं तो ?
दीवारें हैं तो , झरोखा है
झरोखें से दिखता आसमाँ है
आसमाँ है , तो चाह है
चाह है तो भूख है
और
भूख है तो ……
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र