(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक व्यंग्य – मौसम ठंड का)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 253 ☆

? व्यंग्य – मौसम ठंड का ?

मौसम के बदलाव के साथ, हवाएं सुस्त और शीतल हो जाती हैं। सुबह सूरज को भी अपनी ड्यूटी पर निकलने के लिए कोहरे की रजाई हटानी होती है। ऑपरेशनल कारणों से बिना बताए हवाई जहाज लेट होने लगते हैं। द्रुत गति की ट्रेन मंद रफ्तार से चलने को बाध्य हो जाती हैं। कम्बल बांटने वाली समाज सेवी संस्थाओं को फोटो खिंचाने के अवसर मिल जाते हैं। स्थानीय प्रशासन अलाव के लिये जलाऊ लकड़ी खरीदने के टेंडर लगाने लगता है। पुराने कपड़ों को बांटकर मेरे जैसे लोग गरीबों के मसीहा होने के आत्म दंभ से भर जाते हैं। श्रीमती जी के किचन में ज्वार, बाजरे, मक्के की रोटी बनने लगती है। स्वीट्स शाप पर गुड़ के मेथी वाले लड्डू और गाजर का हलुआ मिलने लगता है। गीजर और रूम हीटर के चलते बिजली का बिल शूट होने लगता है।

मित्रों के मन में कुछ पार्टी शार्टी, पिकनिक विकनिक हो जाये वाले ख्यालों की बौछार बरसने लगती है। रजाई से बाहर निकलने को शरीर तैयार नहीं होता। बाथरूम से बिना नहाये ही बस कपड़े बदल कर निकल आना अच्छा लगता है। धूप की तपिश, पत्नी के तानों सी सुहानी लगने लगे। जब ऐसे सिमटम्स नजर आने लगें तो समझ जाइये कि ठंड का मौसम अपने शबाब पर है। ऐसे सीजन में  पुरानी शर्ट के ऊपर नई स्वेटर डालकर आप कांफिडेंस से आफिस जा सकते हैं। शादी ब्याह में बरसों से रखा सूट और टाई पहनने के सुअवसर भी ठंड के मौसम में मिल जाते हैं। ठंड की शादियों में एक अनोखा दृश्य भी देखने मिल जाते जो किंचित जेंडर बायस्ड लगता है। जब शीतलहर से जनता का हाल बेहाल हो तब भी  शादियों में महिलाओ को खुले गले के ब्लाउज के संग रेशमी साडी में रात रात भर सक्रिय देखा जा सकता है।

दरअसल फेसबुक डी पी के लिये, फोटो और फैशन के दम पर उनका बाडी थर्मोस्टेट बिगडा बिगडा नजर आता है। सुबह की कोहरे वाली सर्द हवा, कभी हल्की फुल्की बारिश और यदि कहीं ओले भी गिर गये तो गर्मी के मौसम में जिस नैनीताल मसूरी के लिये हजारों खर्च करके दूर पहाड पर जाना होता है, वह परिवेश स्वयं आपके घर चला आता है। अपनी तो गुजारिश है कि ऐसे बढ़िया ठंड के मौसम में रिश्तों को गर्म बनाये रखें और मूंगफली को काजू समझकर खायें, बस।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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