डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – जैसे नहीं मिली हो…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 172 – गीत – जैसे नहीं मिली हो…
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कहने को कुछ खास नहीं है
यही पुराने रस्ते
आते जाते देखा देखी
दो दो बार नमस्ते
खुशबू न्यौता देती रहती
लगती भली भली हो।
कभी अगर कुछ कहा सुना तो
वह भी केवल इतना
देखो सीखी नई बुनाई
कोर्स हुआ है इतना
पढ़ना चाहो मुझको पढ़ लो
पढ़ने कहाँ चली हो।
अक्सर होंठ फड़कते देखे
देखी आँख भटकती
सम्मन पाकर अँगड़ाई का
सारी नसें चटकती
गंध उम्र ने सौंपी लेकिन
अब तक नहीं खिली हो।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈