श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 112 – मनोज के दोहे… ☆

1 धुंध

धुंध बढ़ा है इस कदर, दिखे न सच्ची राह।

राजनीति में बढ़ रही, धन-लिप्सा की चाह।।

2 कुहासा

घोर कुहासा रात भर, पथ में सोते लोग।

मानवता को ढूँढ़ते, आश्रय का शुभ-योग।।

3 कोहरा 

मीलों छाया कोहरा, नहीं सूझती राह ।

प्रियतम-बाट निहारती, घर जाने की चाह।।

4 बर्फ

जमती रिश्तों में बर्फ, हटे बने जब बात।

रिश्तों में हो ताजगी, अच्छी गुजरे रात।।

5 शरद

शरद-काल मनमोहता, पंछी करें किलोल।

फूल-खिलें बगिया-हँसे, प्रकृति लगे अनमोल।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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