श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “पतंगों से दिन…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 37 ☆ पतंगों से दिन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
खो गये हैं
नभ में उड़ते
पतंगों से दिन।
*
हाथों से
छूटी अचानक
डोर कच्ची सी
कब बड़ी
हो गई जाने
पीर बच्ची सी
*
भर रहे हैं
मन में दहशत
लफंगों से दिन।
*
रिश्ते-नाते
जैसे कोई
राह पथरीली
हो गये
संबंध थोथे
हवा जहरीली
*
भागते हैं
अपनेपन से
दबंगों से दिन।
*
आईनों से
पूछते हैं
अतीतों के रूप
चुभ रही है
आजकल की
चिलचिलाती धूप
*
चलो खोजें
जंगलों में
कुरंगों से दिन।
***
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈