श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 31 ☆

☆ कविता ☆ “नक़्श-ए-इश्क़…☆ श्री आशिष मुळे ☆

उसे जबान की क्या जरूरत

कहे जो शख़्स प्यार बुरा है

नहीं समझा वो सदियों से

होना जानवर से इंसान क्या है

 

जिस किताब को नहीं इश्क के मायने

उसे पढ़कर क्या पाना

बस जिंदगी की सीख भूलना

और मौत में जनम खोजना

 

कहे जो दोस्त, मत कर मोहब्बत

उसे सुनकर क्या फायदा

बस दिलोदिमाग को गिरवी रखना

और सांप को ख़ैर-ख़्वाह समझना

 

बड़ी से बड़ी दौलत

नहीं ख़रीद सकती इसे

नक़्ल इसकी मगर

बिकती बड़ी सस्ते में

 

नक़्ल तो नक़्ल सही

मगर खरीद वो जज़्बात से

नक़्ल के पीछे भी है एक शक्ल

देखो गर जुनून-ए-इश्क़ से

 

जो ना समझे नक़्श-ए-इश्क़

वो जन्नत की तलाश करते है

दर्द-ए-इश्क़ दे सुकून जिसको

जन्नत उसे तलाश करती है….

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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