श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 68 ☆ देश-परदेश – सामूहिक भोजन वितरण ☆ श्री राकेश कुमार ☆
हम सब समय समय पर सामूहिक भोजन का लुत्फ लेते आ रहे हैं। पंगत प्राणली से गिद्ध प्रणाली तक कई सैंकड़ो बार इसका रसवादन कर अपने स्वास्थ्य के पाये को खोखला कर चुके हैं।
आज भी जब कभी मौका मिलता है, तो चूकते नहीं हैं, विगत दिनों मुफ्त का माल़ तोड़ने के अवसर मिले, तो और अधिक मज़े आए।
गणतंत्र दिवस पर वरिष्ठ नागरिक केंद्र पर फुरसतियों के देश प्रेम गीत और कविता पाठ सुन कर हमारे मन भी देश के प्रति जज़्बा उड़ान भरने लगा। नाश्ते की प्लेट में बूंदी का लड्डू, गर्म कचोरी और प्लेट में बचे हुए रिक्त स्थान को भरने के लिए आलू के तले हुए चिप्स सब के स्थान पर उपलब्ध करवाए गए थे।
वहां उपस्थित करीब चालीस व्यक्तियों की औसत आयु पचहत्तर से भी अधिक थी। क्या इस प्रकार का भोजन उनके स्वास्थ्य की लिए उचित है?
इसके स्थान पर भुने चने, गजक या केला इत्यादि भी दिया जाना बेहतर होता, क्योंकि वहां उपस्थित सभी वयोवृद्ध श्रेणी से थे।
कुछ लोगों ने कचौरी नहीं खाई तो कुछ ने शक्कर रोग के कारण लड्डू प्लेट में त्याग दिया। इससे अच्छा होता खाली प्लेट भी रख दी जाती और सब को बता दिया जाता कि, जिससे किसी को कुछ सेवन नहीं करना है, तो उसको खाली प्लेट में रख देवें। अतिरिक्त आइटम हमारे जैसे पेटू लोगों को भी दिया जा सकता था।
विगत दिन एक अन्य “स्वास्थ्य कार्यशाला” में भी बंद डिब्बों में करीब छः सौ लोगों को भोजन दिया गया। आयोजन कर्ता लोगों के लिए अत्यंत कठिन कार्य होता है, यदि “गिद्ध प्रणाली” के अंतर्गत भोजन परोसा जाये तो हमारे जैसे मुफ्त की मलाई खाने वाले नकली पनीर की सब्ज़ी का डोंगा ही उठा लेते हैं । गर्म पूरी/ रोटी के लिए अपने ही लोगों को कुचल कर पूरियों से प्लेट में रखे हुए हलवे के पहाड़ तक तो ढांक देते हैं।
यदि सदियों पुरानी पंगत व्यवस्था के अंतर्गत आयोजन किया जाए तो बैठने के स्थान की उपलब्धता आड़े आती हैं। वैसे जहां बैठने का स्थान उपलब्ध है, तो जरूरत से अधिक भोजन कर चुके मेहमान को उठाने के लिए अलग से दो मज़दूर लगाने पड़ते हैं। कुछ आयोजन कर्ता चेन-पुली यंत्र से भी पंगत में बैठे मेहमान को उठवाने की व्यवस्था करवाते हैं।
बाज़ार से डिब्बा बंद भोजन प्रणाली में बहुत सारे आइटम सभी को दे दिए जाते हैं, नापसंद और जरूरत से अधिक खाद्य पदार्थ कचरे में चले जाते हैं।
मिठाई प्रेमी तो एक टुकड़े मिठाई के लिए अतिरिक्त डिब्बा लेकर अपनी जुबां की मांग पूर्ति तो कर देते हैं, लेकिन जानते हुए भी डिब्बे का अन्य खाद्य व्यर्थ कचरा पात्र में डाल कर अपने आप को सफाई का ब्रांड एंबेसडर मान लेते हैं।
अब विराम देता हूं, फोन की घंटी बज रही, अवश्य ही भोजन के आमंत्रण के लिए होगा।
© श्री राकेश कुमार
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