डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “औरत! ”।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 5 ☆
☆ औरत! ☆
तुझे इन्सान किसी ने माना नहीं
तू जीती रही औरों के लिये
तूने आज तक स्वयं को पहचाना नहीं।
नारी!
तू नारायणी
भूल गयी,शक्ति तुझमें
दुर्गा और काली की
तु़झ में ही औदार्य और तेज
लक्ष्मी,सरस्वती-सा
तूने उसे पहचाना नहीं।
तुझमें असीम शक्ति
दुश्मनों का सामना करने की
पराजित कर उन्हें शांति का
साम्राज्य स्थापित करने की
तूने आज तक उसे जाना नहीं।
तुझमें ही है!
कुशाग्र बुद्धि
गार्गी और मैत्रेयी जैसी
निरूत्तर कर सकती है
अपने प्रश्नों से
जनक को भी
तूने आज तक यह जाना नहीं।
तुझमें गहराई सागर की
थाह पाने की
साहस लहरों से टकराने का
सामर्थ्य आकाश को भेदने की
क्षमता चांद पर पहुंचने की
तूने अपने अस्तित्व को पहचाना नहीं।
तू पुरूष सहभागिनी!
दासी बन जीती रही
कभी तंदूर,कभी अग्नि
कभी तेजाब की भेंट चढती रही
तुझमें सामर्थ्य संघर्ष करने का
तूने स्वयं को आज तक पहचाना नहीं।
© डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
स्त्री शक्ति को सलाम
बहुत खूब