श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय व्यंग्य – “डिजिटल एनीमल)

☆ व्यंग्य “डिजिटल एनीमल☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

इंसान के बारे में कहा जाता है कि वह सामाजिक प्राणी है। आप मानें या माने पर आज के इंसान को सामाजिक प्राणी की जगह डिजिटल एनीमल कहना ज्यादा उचित लग रहा है। अब इंसान को इंसान के साथ अच्छा नहीं लगता, इंसान का दिमाग विचित्र होता जा रहा है, हर कोई अपने मूड और मस्ती में रहना चाहता है। कान में आइपोड या प्लग्स लगाकर बैठे व्यक्ति से कुछ कहो तो वह चिढ़ जाता है, फिर आज के इंसान को कैसे कहें कि वह सामाजिक प्राणी है।

सभी के दोनों हाथों में मोबाइल है, मोबाइल के अलावा लेपटॉप या टेबलेट जैसा दूसरा कोई न कोई डिजिटल इंस्ट्रूमेंट भी साथ है, यार भाई… तू तो सामाजिक प्राणी है फिर एक घंटे मोबाइल से अलग रहने की बात से इतना तू अपसेट क्यूं होता है, यदि बैटरी लो हो रही हो तो तू डाउन क्यूं हो जाता है? आठ दस घंटे मोबाइल के चक्कर में तू असामाजिक होने जैसी हरकतें क्यूं करने लगता है? तू तो अपने आपको सामाजिक प्राणी कहता है फिर तुझे मोबाइल में वह अमुक चेहरा क्यूं अच्छा लगने लगता है, जिससे तू मिला भी नहीं है जिसे तू पहचानता भी नहीं है। फिर क्यूं दिनों रात उसी के बारे में सोचता रहता है? तेरे दिल दिमाग में वो अमुक हीरोइन छायी रहती है, ऐसा लगता है जैसे वो तुम्हारे साथ रहती है। यार भाई…तू जाग, तू तो सामाजिक प्राणी है तो तू हमेशा ख्यालों में क्यूं जीने लगा? ऐसा लग रहा है कि तू अपनी लवस्टोरी में अपने साथ एक वर्चुअल पार्टनर के संग जी रहा है, फेसबुक, वाट्स अप, इंस्टाग्राम में तुम्हारा प्यार और संबंध डिजिटल हो गए हैं। तुझे प्यार जैसा कुछ होता तो है पर वह लम्बे समय टिकता नहीं, ब्रेकअप के मामले में तू तो ज्यादा सामाजिक हो गया है।      

प्राइवेसी का नाम तू और तेरा मोबाइल हो गया है, दिखावे की दुनिया का तू सरताज हो गया है। याद है जब माता-पिता ने तेरा जबरदस्ती विवाह किया था तो बारात बिदा होते ही कार में बैठे बैठे तू तुरंत नव परिणित युगल स्टेट्स अपलोड करने में लग गया था, फूफा और जीजा की तरफ तो देखा भी नहीं था, फूफा बहुत नाराज हो गए थे तो तुम्हारे माता-पिता उनके चरणों में लोट गये थे पर तुम अपलोड करने और रील बनाने में बिजी हो गए थे। सब बाराती हंस रहे थे और तू नयी पत्नी से कह रहा था कि जब मैं मोबाइल में होऊं तो मुझे डिस्टर्ब नहीं करना, मैं क्या देख रहा हूं…क्या कर रहा हूं इस बारे में कभी कोई सवाल नही करना क्योंकि मेरे पांच हजार फ्रेंड हैं, हालांकि वे जब सामने मिलेंगे तो भले न हम पहचाने पर वे डिजिटल फ्रेंड की श्रेणी में तो आते हैं, यही फ्रेंड हमें दिन-रात लाइक और कमेंट देते हैं, ये हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। नात- रिश्तेदार तो स्वार्थवश जुड़े होते हैं हमारी पोस्ट देखकर भी अनजान बन जाते हैं, आज के युग में नात रिश्तेदार सब असामाजिक प्राणी हो गए हैं पर लाइक और कमेंट देने वाले सच में सामाजिक प्राणी कहलाने लायक होते हैं। तुम्हें याद है शादी के दूसरे दिन तुम्हारा हनीमून था तो उस रात आकाश में पूरा मून तो निकला था पर उस रात को भी तुमने डिजिटल हनीमून मनाने का फैसला कर लिया था, और वह बेचारी रात भर तड़फती रह गई थी…

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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