श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “आशीष साहित्य”में उनकी पुस्तक पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है “चेतना तत्व ”।)
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 30☆
☆ भक्ति ☆
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान श्री हरि की पूजा की जाती है । यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है । इस व्रत में सूत या रेशम के धागे को लाल कुंकुम से रंग, उसमें चौदह गांठे (14 गांठे भगवान श्री हरि के द्वारा 14 लोकों की प्रतीक मानी गई है ) लगाकर राखी की तरह का अनंत बनाया जाता है । इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान पर चढ़ा कर व्रती अपने बाजु में बाँधते हैं । पुरुष दाये तथा स्त्रियां बायें हाथ में अनंत बाँधती है । ऐसी मान्यता है कि यह अनंत हम पर आने वाले सब संकटों से रक्षा करता है। यह अनंत डोरा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देने वाला माना गया है। यह व्रत धन पुत्रादि की कामना से किया जाता है। इस दिन नए डोरे के अनंत को धारण करके पुराने का विसर्जन किया जाता है ।अग्नि पुराण के अनुसार व्रत करनेवाले को एक सेर आटे के मालपुए अथवा पूड़ी बनाकर पूजा करनी चाहिये तथा उसमें से आधी ब्राह्मण को दान दे और शेष को प्रसाद के रूप में बंधु-बाँधवों के साथ ग्रहण करें । इस व्रत में नमक का उपयोग निषेध बताया गया है । ऐसी मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति को अनंत रास्ते में पड़ा मिल जाये तो उसे भगवान की इच्छा समझ कर, अनंत व्रत तथा पूजन करना चाहिये । यह व्रत पुरुषों और स्त्रियों के समस्त पापों को नष्ट करने वाला माना गया है । इस व्रत के प्रभाव से ही पाण्डवों ने अपने भाईयों सहित से महाभारत का युद्ध जीत कर अपना खोया हुआ साम्राज्य तथा मान सम्मान पाया । कहा जाता है कि जब पाण्डव जुएँ में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्त सूत्र धारण किया।
अनन्तचतुर्दशी-व्रत के प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए।
भगवान हनुमान जैसा आज तक कोई भी भक्त नहीं हुआ है।
नारद मुनि एक बार भगवान हनुमान से मिले, जिन्होंने उनके लिए एक गीत गाया। संगीत का आनंद लेते हुए नारद ने अपनी वीणा को एक चट्टान पर रखा जो भगवान हनुमान के गीत से पिघल गयी थी, और नारद की वीणा पिघले हुए चट्टान में समा गयी जब भगवान हनुमान द्वारा गायन खत्म हो गया था, तो वो चट्टान फिर से कड़ी हो गई और नारद मुनि की वीणा उसमें फंस गई।तब भगवान हनुमान ने नारद मुनि से एक गीत गाकर चट्टान को पिघलाने और अपनी वीणा को बाहर निकालने के लिए कहा। नारद मुनि ने गीत गाया किन्तु चट्टान जरा भी नहीं पिघली।जब भगवान हनुमान ने पुनः एक गीत गाया तो चट्टान फिर से पिघल गयी। तब नारद मुनि ने इसका कारण पूछा। भगवान हनुमान ने कहा, “हे महान ऋषि! मेरा गीत मेरे भगवान राम की भक्ति से भरा था, लेकिन आपका अहंकार से भरा हुआ था। वह केवल भक्ति ही है, अहंकार नहीं जो चट्टानों को भी पिघला सकता है।
© आशीष कुमार