डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से हम आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत अप्रतिम कविता गुफ़्तगू करना सीख ले… । यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की लेखनी को इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 222 ☆
☆ गुफ़्तगू करना सीख ले… ☆
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चंद लम्हें अपनों की ख़ुशी के लिए
उनके अंग-संग गुज़ारना सीख ले
बदल जाएगा ज़माने का चलन
तू ख़ुद पर भरोसा करना सीख ले
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आजकल दस्तूर-ए-दुनिया से
वाक़िफ़ होना है बहुत लाज़िम
कौन अपना, पराया कौन
तनिक यह पहचानना सीख ले
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ज़िंदगी का क्या भरोसा
कब तक साथ निभाएगी
तू अपनों की ख़ुशी के लिए
उनका साथ निभाना सीख ले
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मौसम का क्या भरोसा
कब कश्ती का रुख बदल जाए
अपने कब बेवफ़ा हो जाएं
इस तथ्य को स्वीकारना सीख ले
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यह दुनिया बड़ी ज़ालिम है
मुखौटा लगा सबको छलती
भरोसा करना मत किसी पर
तू ख़ुद से गुफ़्तगू करना सीख ले
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© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी
19 जनवरी 2024
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