श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना “छल प्रपंच की आड़ ले…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 120 – छल प्रपंच की आड़ ले… ☆
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करुणा जागृत कीजिये, निज मन में श्री मान ।
अहंकार की विरक्ति से, जग होता कल्यान ।।
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दूर छिटकने जब लगें, सारे अपने लोग ।
तब समझो है लग गया, अहंकार का रोग ।।
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मन ग्लानि से भर उठे, अपने छोड़ें साथ ।
काम न ऐसा कीजिये, झुक जायेे यह माथ।।
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मन अशांत हो जाय जब, मत घबरायें आप ।
विचलित कभी न होइयेे, करंे शांति का जाप ।।
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गिर कर उठते जो सदा, करते ना परवाह ।
पथ दुरूह फिर भी चलें, मिलती उनको राह ।।
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कष्टों में जीवन जिया, मानी कभी न हार ।
सफल वही होते सदा, जीत मिले उपहार ।।
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भूत सदा इतिहास है, वर्तमान ही सत्य ।
कौन भविष्यत जानता, काल चक्र का नृत्य ।।
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छल प्रपंच की आड़ ले, बना लिया जो गेह ।
पंछी यह उड़ जाएगा, पड़ी रहेगी देह ।।8
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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