श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “मधुर वचन कहि कहि परितोषी…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 186 ☆ मधुर वचन कहि कहि परितोषी… ☆
किसी ने कुछ कह दिया और आप उस बात को पकड़ कर बैठ गए। ऐसे तो जीवन वहीं रुक जाएगा। जो होता है अच्छे के लिए होता है, सकारात्मक चिंतन करते हुए स्वयं पर कार्य करें। अपने आप को यथार्थ के साथ आगे बढ़ाइए, जो मेहनत करेगा वो विजेता बनकर शिखर पर स्थापित होगा। ये बात अलग है कि कुछ भी स्थायी नहीं होता सो लगातार मेहनत करते रहें।
भारतीय संस्कृति में श्रद्धा और विश्वास का महत्वपूर्ण योगदान है। धरती को माँ के समान पूजते हैं तो वहीं जीवन दायनी नदियों को अमृततुल्य माँ सम आदर देते हैं।यहाँ तक कि अपने देश को भी हम भारत माता कह कर संबोधित करते हैं। हिंदी को भारत माँ के माथे की बिंदी, ऊर्दू को हिंदी की बहन ये सब भावनात्मक रूप से सुसंस्कृत होने का परिचायक है।
एकमेव परमब्रह्म द्वितीयम नास्ति
ये हमारी श्रद्धा और विश्वास का ही परिणाम है कि हम प्रकृति के कण- कण में भगवान के दर्शन करते हैं।
जितने भी असंभव कार्य हुए हैं वे सब विश्वास के बल पर संभव हुए हैं स्वयं पर विजय पाना कोई आसान नहीं होता आप दृढ़ इच्छाशक्ति रखकर सब कुछ बड़ी सहजता से पा सकते हैं।
श्रद्धा अरु विश्वास का, सदा सुखद संयोग।
शरण गुरू की आइये, करें ध्यानमय योग।।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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