प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना – “बड़ा कौन है?..” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “बड़ा कौन है?…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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बड़ा नहीं बनता है कोई पद से या अधिकार से
बड़ा कहा जाता है मानव मन के सोच-विचार से।
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जिनके मन में दयाभाव औ करुणा का आगार है
उनका आदर करता आया सदा सकल संसार है।
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महावीर, गौतम औ’ गाँधी तीनों बड़े उदार थे
इससे माने जाते सबसे बड़े संत संसार के ।
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मिला बड़प्पन कभी न राजा, सिंहासन या ताज को
दिया बड़प्पन दुनिया ने मन की मीठी आवाज को।
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कभी झलकता नहीं बड़प्पन कोई आकार प्रकार से
पर सौंदर्य निखरता दिखता मन के ममता-प्यार से।
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छोटा हो भी बड़ा वही है जिसकी प्रेमल रहा
जिसके मन परिवार पड़ौसी औ’ जग की परवाह।
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छोटा-बड़ा हुआ करता है मानव निज व्यवहार से
नहीं कभी भी धन संग्रह से, पद से या अधिकार से।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈