श्री अभिमन्यु जैन
परिचय
- जन्म – 15 फरवरी 1952
- रुचि – साहित्य, संगीत, पर्यटन
- प्रकाशन/प्रसारण – मूलतः व्यंग्यकार, आकाशवाणी से कभी कभी प्रसारण, फीचर एजेन्सी से पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन।
- पुरस्कार/सम्मान – अनेक संस्थाओं से पुरस्कार, सम्मान
- सम्प्रति – सेल्स टैक्स विभाग से रिटायर होकर स्वतंत्र लेखन
- संपर्क – 955/2, समता कालोनी, राइट टाउन जबलपुर
☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆
☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆
तुम में कैसा सम्मोहन है, या है कोई जादू टोना,
जो दर्श तुम्हारे कर जाता नहीं चाहे कभी विलग होना.
जी हाँ, गुरुवर, संत शिरोमणि 108 आचार्य विद्यासागरजी महामुनिराज का आकर्षण चुम्बकीय रहा. आचार्यश्री के ह्रदय में वैराग्यभाव का बीजारोपण बाल्यावस्था में ही आरम्भ हो गया था, मात्र 20वर्ष की अवस्था में आजीवन ब्रह्म चर व्रत तथा 30जून 1968 को 22 वर्ष की युवावस्था में मुनि दीक्षा हुई. आचार्यश्री के विराट व्यक्तित्व को कुछ शब्दों या पन्नों में समेटना, समुद्र के जल को अंजुली में समेटने जैसी कोशिश होगी.
गुरुवर का व्यक्तित्व अथाह, अपार, असीम, अलोकिक, अप्रितिम,, अद्वितीय रहा. महाराजश्री की वाणी और चर्या से प्रेरणा लेकर अनगिनत भव्य श्रावक धन्य हुए. आचार्य श्री ने मूकमाटी जैसे महाकाव्य का सृजन करके साहित्य परम्परा को समृद्ध किया है. विहार के दौरान महाराजश्री के पाद प्रक्षा लन जल को श्रावक सिर माथे धारण करते. इस जल को, खारे जल के कुंवें में डाला तो जल मीठा हो गया, सूखे कुंवें में डाला तो जल से भर गया, बीमार पशुओं को पिलाया तो, निरोगी हो गया. आचार्यश्री एक, घर के बाहर पड़े पत्थर पर क्या बैठे, पत्थर अनमोल हो गया. उसे खरीदने वाले लाखों रूपया देने तैयार हो गये, पर गरीब ने सब ठुकरा दिया. महाराज जी को मूक पशुओं विशेषकर गौवंश से बहुत लगाव था, उनका जहां जहां चातुर्मास हुआ, वहाँ वहाँ गौशाला की स्थापना कराई. आचार्यश्री को नर्मदाजी से विशेष लगाव था. नर्मदा किनारे अमरकंटक,/ जबलपुर /नेमावर आदि स्थानों पर उनके द्वारा गौशाला एवं जिना लयों का निर्माण कराया गया, उनके द्वारा 500 से अधिक दीक्षा दी गईंउनका सोच, धर्म – अध्यात्म को जीवन से जोड़ने का था. उनके द्वारा चल चरखा के माध्यम से हज़ारों युवाओं को रोजगार मुहैया कराया. इंडिया नहीं भारत बोलो, का नारा देकर अपनी बोली, अपनी भाषा को बढ़ावा दिया.
महाराजश्री विनोदप्रिय भी थे, प्रवचनों के दौरान कहते, ” काये सुन रहे हो न ” तो पुरे पंडाल में एक स्वर में आवाज गूंजती “हओ”.
प्रतिभा स्थली के माध्यम से बालिकाओं के शिक्षण मार्ग को सरल बनाया. पूर्णायु आयुर्वेद संस्थान से प्राकृतिक उपचार और जड़ी बूटीयों के महत्वपूर्ण को पुनरस्थापित करने के प्रयास हो रहे हैँ. संत सबके, अवधारणा को आचार्यश्री के महाप्रयाण ने प्रमाणित किया है. उनकी ख्याति और कीर्ति जैन समाज तक सीमित न होकर जन जन तक व्याप्त है. उनके समाधिस्ट होने से हर मन व्याकुल और व्यथित है. हर आँख नम होकर यही कह रही है -:
तेरे चरण कमल द्वय गुरुवर रहें ह्रदय मेरे,
मेरा ह्रदय रहे सदा ही चरणों में तेरे,
पंडित पंडित मरण हो मेरा ऐसा अवसर दो,
मेरा अंतिम मरण समाधि तेरे दर पर हो.
© श्री अभिमन्यु जैन
संपर्क – 955/2, समता कालोनी, राइट टाउन जबलपुर
साभार – जय प्रकाश पाण्डेय
संपर्क – 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002 मोबाइल 9977318765
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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