श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “नया पथ अपना स्वयं गढ़ो…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #224 ☆
☆ नया पथ अपना स्वयं गढ़ो… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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कौन बड़ा है कौन है छोटा
कौन खरा है कौन है खोटा
कौन लाभप्रद किसमें टोटा
उलझन में न पड़ो
नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।
बाधाएँ अनगिन आएगी
चट्टानें बन टकराएगी
गंध रूप रस रम्य रमणियाँ
शुभचिंतक बन उलझायेगी,
शांत चित्त होकर तटस्थ
गहरे से इन्हें पढ़ो
नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।
है दृष्टि गड़ाए गगन गिद्ध
बगुले बन बैठे संत सिद्ध
हैं छिपे आस्तीन में विषधर
छल शिखर चढ़ा सच है निषिद्ध,
विपरीत हवाओं से जूझो
असत्य से सदा लड़ो
नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।
हो सजग स्वयं से भेंट करो
कालिमा चित्त की श्वेत करो
निष्पक्ष शांत निश्छल मन से
जन-हित में निर्णय नेक करो
बाहर-भीतर जो चोर उन्हें
निर्मोही हो पकड़ो
नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈