श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 81 ☆ देश-परदेश – कुछ दिन तो गुजारो… ☆ श्री राकेश कुमार ☆
दो सदियों पूर्व ये बात सदी के महनायक अभिताभ बच्चन ने लाखों बार टीवी पर आकर दोराही हैं। एक हम है, उनकी बताई गई कोई भी बात मानते ही नहीं हैं, जैसे की कल्याण ज्वेलर से सस्ता सोना खरीदने की हो या मुथूट फाइनेंस से उसी सोने को गिरवी रख कर धन जुटाने की हो। खाने में भी उनकी बताई भुजिया हो या विमल गुटका हम सेवन नहीं करते है चाहे मुफ्त में ही क्यों ना उपलब्ध हो।
विगत कुछ वर्षों से अभिताभ बच्चन गुजरात की खुशबू की बात भी नहीं कर रहे हैं। गुजरात की राजधानी अहमदाबाद की ट्रेन टिकट भी एक माह बाद की आसानी से मिल रही थी, इसका मतलब अभिताभ जी की बात का असर खत्म हो रहा हैं। लेकिन इस चक्कर में हमसे गलती से अहमदाबाद की टिकट बुक हो गई हैं।
मौसम आम चुनाव का हमेशा ही रहता है। कभी किसी राज्य, नगर निगम इत्यादि में चुनाव नहीं तो उपचुनाव हो जाते हैं। आम का मौसम भी है, जब अहमदाबाद पहुंचे तो ” केसर” आम की खुशबू से कैसे बच सकते हैं। हमारे हिसाब से तो आम के शौकीन लोगों के मद्देनजर गुजरात राज्य का नाम बदल कर ” आम प्रदेश” या फिर अहमदाबाद का नाम ” आमबाद” कर देने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
एक मित्र से जब बात हुई तो उसने बताया जबलपुर से भी अहमदाबाद की रेल टिकट आसानी से मिल है। फिर क्या वो भी पहुंच गए, अहमदाबाद!
दूर कहीं गीत बज रहा था, “जहां चार यार मिल जाएं” वहां आम का मौसम में भी खास हो ही जाता हैं।
© श्री राकेश कुमार
संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)
मोबाईल 9920832096
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈