सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – गीत – नव चिंतन है नवल चेतना…।
रचना संसार # 5 – गीत – नव चिंतन है नवल चेतना… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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मन तुरंग उड़ता ही जाता
डालो भले नकेल।
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कभी पढ़े कबीर की साखी,
कभी पढ़े वह छंद।
तृषित हृदय की प्यास बुझाता,
पीकर मधु मकरंद।।
अंग-अंग में बजती सरगम,
चलती प्रीति गुलेल।
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संकल्पों की सीढ़ी चढ़ता,
हों कितने अवरोध।
हर चौखट पे अमिय ढूँढ़ता,
करता है अनुरोध।।
चढ़कर अनुपम शुचिता डोली,
नवल खेलता खेल।
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नव चिंतन है नवल चेतना,
शब्द-शक्तियाँ साथ।
शब्दकोश करता समृद्ध भी,
सजे गीत हैं माथ।।
मधुरिम नवरस अलंकरण की,
चलती जैसे रेल।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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