श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “इन सम यह उपमा उर आनी…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 195 ☆ इन सम यह उपमा उर आनी

एक शब्द दो लोग पर अर्थ अलग निकलता है। हमारा व्यक्तित्व उसके साथ जुड़कर उसे  शक्तिशाली बनाता है। जिनकी कथनी और करनी में भेद हो, केवल एक पक्ष को साधते हुए बयानबाजी  की जा रही हो तो शक होना जायज है। जल्दबाजी में दूसरे के शब्दों को कापी कर  स्वयं बढ़चढ़ कर बोलना और हँसी का पात्र बनना। सच तो ये है कि जब दोहरा चरित्र हो तो हास्य के साथ शर्मनाक स्थिति बन जाती है, जिसे सुधारने की नाकाम कोशिश, अनजाने ही उलझन उतपन्न कर देती है। वर्षों से एक ही पदचिन्ह पर चलना और नए युग से तारतम्यता न रख पाना आपको गर्त में धकेल रहा है। जिसे सब कुछ पहले ही मुक्त हस्त से सौंप दिया हो और अब फिर देने की घोषणा करना कहाँ तक उचित है। बंदरबाट की विचार धारा से उन्नति नहीं हो सकती है। जो जिसके योग्य है उसे वो मिलना चाहिए अन्यथा आप के साथ वो भी डूबेगा जिसकी चिंता में आप दिन- रात  एक करते जा रहे हैं।

सत्यराज से सत्यधर्म तक सबको समान अवसर मिलना चाहिए। गुणीजन जब बड़े पदों में बैठेंगे तभी सही निर्णय होंगे। रणनीति बनाने की कला सबको नहीं आती। सही विचारधारा के साथ सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का चिंतन जनकल्याण की दिशा को गति प्रदान करेगा।

आछे दिन पाछे गए, गुरु सो किया न हेत।

अब पछताए होत क्या? चिड़िया चुग गय खेत।।

हैरानी तो तब होती है जब सलाहकार विदेशी धरती पर बैठकर देश को राह दिखाने की नीतियाँ निर्धारित करता हो। समझदारी को ताक पर रख कुछ भी बोलते जाना क्योंकि जो बोल रहे हैं उसका अर्थ तो सीखा ही नहीं। जिसका जमीनी जुड़ाव नहीं होगा उसे न तो कहावतों  न ही मुहावरों का पता होगा। वो बस लिखा हुआ पढ़ेगा। अरे भई कम से कम ऐसा लिखने वाला तो ढूंढिए जो चने के झाड़ में बैठ कर न लिखता हो, उसे हिंदी और हिन्द के निवासियों के मन की जानकारी हो।

अभी भी समय है जागिए अन्यथा- जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है सो खोवत है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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