श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “आशीष साहित्य”में उनकी पुस्तक पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक महत्वपूर्ण आलेख “चन्द्रमा की गति और तिथि विज्ञान”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 32☆
☆ चन्द्रमा की गति और तिथि विज्ञान ☆
अब ‘सोमवती के अर्थ को समझने की कोशिश करें, यह वह दिन है जो ‘सोम’ या ‘चंद्रमा’ का दिन है, जिसका अर्थ सोमवार है क्योंकि चंद्रमा का एक नाम ‘सोम’ भी है । तो सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं ।
सोमवार वह दिन है जब चंद्रमा ऊर्जा की अपने चरम पर होती है या ‘अमरता’ का ‘सोम-तरल’ वास्तव में चंद्रमा से गिरता है । दूसरी ओर, अमावस्या मेंपृथ्वी पर कोई चंद्रमा नहीं दिखता है । तो सोमवती अमावस्या उस समय की शुरुआत है जब पृथ्वी पर चंद्रमा की ऊर्जा का प्रवाह, शुद्ध और नए चक्र में शुरू होने वाली होती है । चंद्रमा की ऊर्जा हमारी मानसिक शक्तियों को प्रभावित करती है, जिसे हमारे शरीर के अंदर बायें ओर की शरीर नियंत्रक नाड़ी ‘इड़ा’ द्वारा नियंत्रित किया जाता है । तो सोमवती अमावस्या के दिन मस्तिष्क शाँत रहता है और नए विचारों को एकत्र करने के लिए तैयार रहता है । कुछ नया विश्लेषण और योजना बनाने का यह सबसे अच्छा दिन होता है ।
ऐसे ही अश्विन माह के चन्द्रमा के शुक्ल पक्ष की अष्टमी रात्रि को जब चन्द्रमा ‘मूल’ नक्षत्र और सूर्य ‘कन्या’ राशि में होता हैऔर अगर इस समय पर चन्द्रमा नवमी तिथि को स्पर्श हो जाता है, तो वह समय अति अति पवित्र होता है । इसे ‘अघारदाना’ नवमी या ‘महा नवमी’ कहा जाता है ।
हमारे चंद्रमा का चक्र सूर्य की तुलना में हमारे सांस्कृतिक संस्कारों से अधिक जुड़ा हुआ है, हालांकि हमारे अधिकांश अनुष्ठान दिन के अनुसार सूरज की रोशनी से होते हैं । चन्द्रमा की तिथि हमारे समारोह और उत्सवों में महत्वपूर्ण तत्व हैं । धार्मिक अनुष्ठान के महीने चंद्र के चक्र पर ही निर्भर हैं । चंद्र महीनों के अनुसार दो प्रकार से गणना होती हैं: ‘गुणचंद्र’ – पूर्णिमा से अगले पूर्णिमा तक गिना जाता है; और ‘मुख्यचंद्र’ – नए चंद्रमा से अगले नए चंद्रमा तक गिना जाता है । जब दो संक्रांतियों (जब चंद्रमा महीने की अवधि के दौरान सूर्य का स्थानांतरण राशि चक्र की एक राशि से दूसरी में होता है) समय के बीच दो नए चंद्रमा होते हैं, तब कुछ अवलोकनों के लिए वह समय अनुपयुक्त माना जाता है । ‘गुणचंद्र’ मास (महीना) सामान्य रूप से जन्म तिथि, जन्माष्टमी, शिवरात्रि, पितृ पक्ष आदि की गणनाओं में उपयोग किया जाता है । परन्तु सालाना श्राद्ध की गणनाओं में ‘मुख्य चंद्र’ का उपयोग किया जाता है ।
इतना ही नहीं अगर ‘रविवार’ कुछ विशेष तिथियों, नक्षत्रों, महीनों के साथ जुड़ जाये तो उनका अलग अलग महत्व होता है । इनके नाम भी अलग-अलग हैं कुल बारह ।
‘माघ’ महीने के छठे उज्ज्वल आधे भाग पर (शुक्ल पक्ष की छटी या षष्ठी तिथि), पड़ने वाले रविवार को ‘नंदा’ कहा जाता है ।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में, इस रविवार को ‘भद्रा’ कहा जाता है ।
‘मार्गशीर्ष’ मास के शुक्ल पक्ष की छटी या षष्ठीम तिथि को पड़ने वाले रविवार को ‘कामदा’ कहा जाता है ।
दक्षिणायन में रविवार को ‘जया’ कहा जाता है जबकि उत्तरायण के रविवार को ‘जयंत’ कहा जाता है।
चन्द्रमा के रोहिणी नक्षत्र के साथ शुक्ल पक्ष की सप्तमी को पड़ने वाले रविवार को ‘विजया’ कहा जाता है ।
रविवार अगर चन्द्रमा के रोहिणी नक्षत्र या हस्ता नक्षत्र में पड़ रहा हो तो उसे ‘पुत्रदा’ कहा जाता है।
रविवार अगर ‘माघ’ माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को पड़े तो उसे ‘ आदित्याभिमुख’ कहा जाता है।
संक्रांति को पड़ने वाले रविवार को ‘ह्रदय’ कहा जाता है, जो भी इस रविवार को सूर्य के सामने एक सूर्य मंदिर में खड़ा होकर ‘आदित्य ह्रदय’ मंत्र का 108 बार जाप करता है, उसे अपने सभी दुश्मनों को नष्ट करने के लिए महान शक्ति मिलती है । रावण के साथ युद्ध के दौरान एक समय पर, भगवान राम युद्ध के मैदान में थक गए थे । यह देखकर ऋषि ‘अगस्त्य’ उनके पास पहुँचे और उन्होंने भगवान राम को यह मंत्र सिखाया । जिससे भगवान राम को सूर्य की शक्ति मिली और उन्होंने पुनः नये उत्साह से रावण से युद्ध किया ।
‘पूर्व फाल्गुनी’ नक्षत्र पर पड़ने वाले रविवार को ‘रोगहा’ कहा जाता है ।
सूर्य ग्रहण अगर रविवार को तो ऐसे रविवार को ‘महाश्वेत-प्रिया’ कहा जाता है । इस रविवार को ‘महाश्वेत’ मंत्र का जाप बहुत फायदेमंद होता है ।
ये सभी रविवार क्या संकेत देते हैं? सूर्य भौतिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है और रविवार वह दिन होता है जब सोमवार, मंगलवार इत्यादि दिनों की तुलना में पृत्वी पर मंगल, चन्द्रमा, बुद्ध आदि अन्य ग्रह ऊर्जा की तुलना में सूर्य की ऊर्जा अधिकतम, ताजा और सबसे पहले पहुँचती है ।
© आशीष कुमार