प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना – “वर्षा आई” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – बाल कविता – “वर्षा आई” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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ऋतु बदली फिर आये बादल उमड़-घुमड़ कर छाये बादल।
दूर-दूर घिर आये बादल नई उमंगें लाये बादल ॥
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सबके मन को भाये बादल कृषकों को हरषाये बादल।
धरती को हरयाये बादल पेड़ों को सरसाये बादल ॥
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गर्मी का दुख भार खो गया हरा-भरा संसार हो गया।
कृषकों का आधार हो गया जन जन पर उपकार हो गया ॥
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गाँव-शहर में खुशियाँ छायी झूलों से उमगीं अमराई।
घर-घर नई बहारें आईं प्रकृति लगी सबको सुखदायी ॥
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जल से भरे जलाशय सारे हुये सुहाने झरने प्यारे ।
उफनी नदियाँ, भरे किनारे कीचड़ ने फिर पैर पसारे ॥
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈