श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “आ पहुँचा था एक अकिंचन…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 197 ☆ लाज भरी अँखियाँ बिहसी… ☆
हमारे आचरण का निर्धारण कर्मों के द्वारा होता है । यदि उपयोगी कार्यशैली है तो हमेशा सबके चहेते बनकर लोकप्रिय बनें रहेंगे । रिश्तों में जब लाभ -हानि की घुसपैठ हो जाती है तो कटुता घर कर लेती है । अपने आप को सहज बना कर रखने की कला हो जिससे लोगों को असुविधा न हो और जीवन मूल्य सुरक्षित रह सकें । ये तो आदर्श स्थिति है किंतु जमीनी स्तर पर ऐसा व्यवहार अब कठिन होता जा रहा है । कहने को तो नारी शक्ति संवर्द्धन पर विचार – विमर्श के सैकड़ों सत्र किए जा चुके हैं पर सही समय पर सही निर्णय लेने में जिम्मेदार लोग चूक जाते हैं । कारण साफ है कि बहुत से ऐसे बिंदु होते हैं जहाँ पर घेर का पीड़ित को ही कसूरवार ठहरा दिया जाता है ।
एक तो बड़ी मुश्किल से कोई हिम्मत जुटा पाता है उस पर इतनी जिरह कि कुछ दिनों बाद उसे अहसास होता है कि ऐसा निर्णय करके उसने अपनी मुसीबतें और बढ़ा ली है । ये सच है कि जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाना कोई सहज बात नहीं है लेकिन किसी न किसी को तो हिम्मत दिखानी होगी जिससे समाज की सोच को बदला जा सके । लोग जब जागरूक होने लगेंगे तो निश्चित ही अपराधी को सही समय पर उचित दण्ड मिलेगा जिससे दूसरे भी इस तरह की गलती करने से पहले सौ बार सोचेंगे ।
भाव विभोरक हिय हर्षाती
मन भावन सी नार ।
पावन गंगा पावन यमुना
पावन सी जलधार ।।
जलधार में पत्थरों को चीर कर राह बनाने की शक्ति होती है । जहाँ जल जीवन देता है वहीं धरती को तृप्त कर अन्न से पूरित करता है ।बिजली की शक्ति को धार कर असम्भव को सम्भव करने वाली कभी असहाय नहीं हो सकती ।
अब समय है सामाजिक जनचेतना का जो सत्यम शिवम सुंदरम के अर्द्ध नारीश्वर रूप को जाग्रत कर सतत सत्य के मार्ग का वरण करे ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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