श्री प्रतुल श्रीवास्तव
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।
प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन
ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व “स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी” के संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)
आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆
☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆
☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆
देश के स्वतंत्रता संग्राम में महाकौशल क्षेत्र का विशेष महत्व रहा है जिसमें अंग्रेज सरकार की रीति – नीति विरोधी उग्र जनसभाओं, प्रदर्शनों के साथ – साथ सम्पूर्ण क्षेत्र में देशभक्ति की वैचारिक लहर का प्रवाह निरंतर बनाए रखने में जबलपुर का योगदान अभूतपूर्व था। जबलपुर के उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में जिन्होंने मैदानी आंदोलनों के साथ ही अपने देशभक्ति पूर्ण साहित्य सृजन से आम आदमी को आंदोलन से जोड़ने का काम किया उनमें सेठ गोविन्द दास एवं सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ ही पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी का नाम प्रमुखता से शामिल है जिन्हें लोग सम्मान से “गोविंदगुरु” कहते थे। एक गीत में उनके तेवर देखिए –
“नवयुग की वह क्रांति चाहिए !
जो साम्राज्यों पर मानव की विजय गुंजाए।
उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं था। वे अपनी किशोरावस्था में ही अपने देश को गुलाम बनाने वाली सत्ता के खिलाफ खड़े हो गए थे। उनके आत्म कथ्य के अनुसार –
जब मैं कक्षा आठवीं का छात्र था तभी स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा लेकर उसकी क्रांतिकारी गतिविधियों की एक किशोर इकाई बन गया था। मैंने मई सन 1931 में सिहोरा जाकर सर्वप्रथम सत्याग्रह में भाग लिया। अध्यक्ष थे एड. पं. लल्लू लाल मिश्रा। मैंने और मेरे मित्र जबलपुर के श्री हरगोविंद व्यास ने “भारत में अंग्रेजी राज्य” जप्तशुदा साहित्य पढ़कर ब्रिटिश हुकूमत का कानून तोड़ा। पं. मिश्रा उसी रात गिरफ्तार करके जबलपुर जेल भेज दिए गए और कम उम्र होने के कारण हम दोनों मित्रों को थाने ले जाकर बेतों से पीटा गया और हिरन नदी के उस पार जबलपुर रोड पर छोड़ दिया गया।
पं. गोविंदगुरु के कथन अनुसार – “मैं उन दिनों की बहुचर्चित एवं लोकप्रिय “राष्ट्रीय बालचर संस्था”, “नेशनल ब्वायज स्काउट्स” का एक संस्थापक सदस्य रहा हूं। हरिजन आंदोलन में गांधी जी के मध्यप्रदेश दौरे के समय मैंने जबलपुर और फिर करेली जाकर बालचर के रूप में सेवाएं दी हैं तथा त्रिपुरी कांग्रेस के समय भी मैं एक स्वयं सेवक के रूप में सेवारत रहा हूं। व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय मुझे अप्रैल 1941 में दो माह का सश्रम कारावास दिया गया और मैं नागपुर जेल भेज दिया गया।”
भारत छोड़ो आंदोलन में 9 अगस्त 1942 को पं. गोविंद प्रसाद तिवारी के सभी वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी साथी गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए थे और नगर में स्वतंत्रता संग्राम के संचालन का भार उनके कंधों पर आ गया जिसे उन्होंने वीरांगना सुभद्रा कुमारी चौहान के मार्गदर्शन में संचालित किया। 12 अगस्त को सुबह सुभद्रा जी गिरफ्तार कर ली गईं और आधी रात को पं. गोविंदगुरु को भी गिरफ्तार कर जबलपुर जेल भेज दिया गया जहां उन्हें डेढ़ वर्ष तक कारावास की सजा भोगना पड़ी।
जेल से वापस आने के बाद उन्होंने एक निजी शाला में शिक्षक के रूप में कार्य प्रारम्भ कर दिया और स्वतंत्रता के बाद अपना पूरा जीवन शिक्षा, साहित्य और समाज को समर्पित कर दिया। वे देश की प्रगित के लिए जितना आवश्यक नव – निर्माणों को मानते थे उतना ही आवश्यक नागरिकों के आर्थिक उन्नयन और व्यक्तित्व के विकास को भी मानते थे।
उल्लेखनीय है कि 1960 में जब आचार्य विनोबा जी का जबलपुर में आगमन होना तय हुआ और उनके रहने संबंधी व्यवस्था पर विचार – विमर्श हुआ तब गोविंदगुरु ने उन्हें राइट टाउन मैदान में घास और बांस की कुटी बनाकर उसमें ठहराने का प्रस्ताव रखा जिसे सर्वमान्य किया गया और विनोबा जी व उनके दो सचिवों के लिए तिवारी जी के नेतृत्व में सुंदर कुटियों और एक उद्यान का निर्माण कराया गया। अपनी इस आवास व्यवस्था को देख कर विनोबा जी प्रफुल्लित हो उठे। उन्होंने इसकी तुलना पंचवटी में सीता – राम की पर्ण कुटी से की। इसी प्रवास में विनोबा जी ने जबलपुर को “संस्कारधानी” कहा।
गोविंदगुरु जिस शाला में शिक्षक थे उसके उद्यान में उन्होंने 20×20 फुट के क्षेत्र में सीमेंट से बना भारत का नक्शा कुछ इस तरह बनवाया जिसमें सारे प्रमुख पर्वत, नदियां और झीलें बनी थीं। उत्तर दिशा में पानी छोड़ने की व्यवस्था थी जहां से नदियों के उद्गम स्थल तक सुराख थे, जब पानी छोड़ा जाता सभी नदियां प्रवाहित होने लगातीं, झीलें भर जातीं। नक्शा देखने मात्र से विद्यार्थियों को भारत की भौगोलिक स्थिति का ज्ञान हो जाता। उन्होंने अपने विद्यार्थियों को जीवन में कर्म और सादगी का महत्व बताया।
उनके द्वारा रचित प्रकाशित कृतियों में प्रमुख हैं – गांधी गीत (गीत संग्रह), तरुणाई के बोल, अभियान गीत, विश्व शांति के साम गान, भावांजलि (सभी काव्य संग्रह), वीरांगना दुर्गावती (खंड काव्य), रक्ताभ भोर (किशोर काव्य संग्रह) एवम सीमा के प्रहरी।
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई उनके विषय में कहते हैं – “स्व. गोविंद प्रसाद तिवारी जिन्हें हम “गोविंदगुरु” कहते थे हमारी साहित्यिक पीढ़ी के अग्रज थे। मुझ जैसे रचनाकारों को उनका स्नेह और प्रोत्साहन प्राप्त था। वे निश्छल और भावुक व्यक्ति थे।”
ख्यातिलब्ध कवि रामेश्वर शुक्ल “अंचल” कहते हैं – “हम लोगों के “गोविंदगुरु” कवि और मनुष्य दोनों रूपों में श्रेष्ठ और प्यार की वस्तु हैं। कवि का ओज और माधुर्य दोनों गुणों पर उनका समान अधिकार है।
“गीतांजलि” के अनुगायक पद्मभूषण पं. भवानी प्रसाद तिवारी उनकी कविताओं पर अपना अभिमत देते हुए कहते हैं – “कवि के मन में जिस क्रांति की पदचाप मुखरित हो चुकी है वह साम्राज्यवाद के ध्वंस के लिए गति ग्रहण करती है।
समाज में व्याप्त भूख, गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, शोषण, हिंसा, सांप्रदायिकता आदि को देखकर वे न सिर्फ तड़प उठते थे वरन उसका पूरी शक्ति से विरोध करते हुए समाधान भी सुझाते थे। मेरे पिताश्री स्व. डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव “गोविंदगुरु” के प्रिय साहित्यिक मित्रों में शामिल थे। मैं उन्हें चाचा कहता था, मेरा सौभाग्य है कि मुझे इतने सहज, सरल, विद्वान देश भक्त का पितृ तुल्य स्नेह और आशीर्वाद मिला। उन्हें सादर श्रद्धांजलि।
श्री प्रतुल श्रीवास्तव
संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629
संकलन – जय प्रकाश पाण्डेय
संपर्क – 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002 मोबाइल 9977318765
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈