श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “खुल गया आकाश…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 56 ☆ खुल गया आकाश… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
खिड़कियों पर
धूप के पर्दे टँगे
खुल गया आकाश ।
हवाओं ने
खोलकर जूड़ा
सुखाए वसन गीले
पंछियों के
सधे पंखों पर
सुबह के रंग पीले
जंगलों के
बीच फूलों की हँसी
छा गया मधुमास।
किसानों के
हाथ,हल की मूठ
हरियाली का सपना
बंजरों तक
जा लिखें हैं श्रम
बोकर पसीना अपना
अंकुरित है
हृदय की पगथली में
झूमता उल्लास ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈