(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेख – राष्ट्रीय एकता के प्रवर्तक “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” उर्फ शहीद उधमसिंह।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 287 ☆
आलेख – राष्ट्रीय एकता के प्रवर्तक “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” उर्फ शहीद उधमसिंह
सरदार उधमसिंह की फिलासफी सदैव सर्वधर्म समभाव और राष्ट्रीय एकता की रही।
उन्होने आत्मनिर्भर होते ही अमृतसर में पेंटर केरूप में एक दूकान शुरू की थी, जिस पर अपना नाम “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” लिखा था, तब उनकी आयु मात्र २० बरस रही होगी । डायर की हत्या के बाद भी जब उनकी उम्र ४० बरस थी उन्होंने पोलिस को अपना यही स्वयं से स्वयं को दिया गया नाम “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” ही बताया था। वे इस नाम को हिन्दू, मुस्लिम, सिख एकता के प्रतीक केरूप में देखते थे। जीवन पर्यंत सरदार उधमसिंह राष्ट्रीय एकता के प्रबल समर्थक रहे, वे दुनियां भर में हर भारतवंशी को अपने भाई की तरह भारतीय ही देखते रहे।
आज जब देश में धर्म और जातिगत ध्रुवीकरण, आरक्षण की राजनीति हो रही है तो यदि वे होते तो उन्हें कितना दुख होता, कल्पनातित है। आज जब सरदार उधमसिंह की जाति कम्बोज, अर्थात पंजाब के चर्मकार ढ़ूढ़ ली गई है, और देश की आजादी में दलित जातियों का योगदान जैसे विषयों पर दिल्ली के विश्वविद्यालय में संगोष्ठी के आयोजन हो रहे हैं, या ऐसे राष्ट्रीय एकता के विघटनकारी विषयों पर पी एच डी के शोध कार्य किये जा रहे हैं, तो भले ही सामाजिक अध्ययन की दृष्टि से यह सब कितना ही उचित क्यों न हो किन्तु यह उस शहीद उधमसिंह की आत्मा को शांति देने वाला नहीं हो सकता जिसने अपना नाम ही “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” रख लिया था ।
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© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
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