श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना उदित उदयगिरि मंच पर। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 200 ☆ उदित उदयगिरि मंच पर

कहते हैं मंत्रो में बहुत शक्ति होती है। शब्दों की महिमा से हम सभी परिचित हैं पर केवल इनके बल पर जीवन नहीं जिया जा सकता। जिसको सामंजस्य करना नहीं आया उसके लिए सब बेकार है। कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब देखकर अनदेखा करना हितकर होता है। जहाँ सत्य को स्वीकार करने से सुकून मिलता है वहीं बहुत कुछ छोड़ देने से जीवन में शांति बनी रहती है। सब कुछ अपने अनुसार हो यही आदत एक दिन इस दुनिया में हमें अकेला कर देती है।

एक -एक कदम चलते हुए ईंट से ईंट से जोड़ने की कला में माहिर व्यक्ति अपना आशियाना बखूबी तैयार कर लेता है। जिसके पास हिम्मत हो उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। माना कि संख्या बल का महत्व होता है पर योग्य व्यक्ति सब कुछ अपने अनुसार करता जाता है भले ही हवा का रुख बदलने लगा हो किंतु वो नाविक ही क्या जो धार के विपरीत जाकर अपने मनवांछित तट पर न पहुंच सके। यही कुशलता उसे विजेता बनाती है। शक्ति के साथ एकजुटता के रंग में रंगते हुए मिलजुलकर चलते रहिए। सत्य का साथ सभी देते हैं।

योग्य और अनुभवी लोगों का साथ जिसके पास हो उसे कोई हरा नहीं सकता है। बुजुर्गों का आशीर्वाद , छोटों का प्यार सबको सहेजते हुए आगे बढ़ते रहिए, सारा विश्व आपके निर्णयों का लोहा मानता है। अतः केवल सच्चे मन से कार्य करते हुए सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास के मूलमंत्र पर अडिग रहिए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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